मक्का

मक्के का भूरा धब्बा

Physoderma maydis

फफूंद

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संक्षेप में

  • पत्तियों, डंठलों, आवरणों एवं छिलकों पर छोटे-छोटे पीले से भूरे रंग के धब्बे।
  • रोगग्रस्त ऊतकों की पट्टियां पत्ती के बड़े हिस्से को ढंक सकती हैं।
  • मुख्य शिरा या इसके बेहद नज़दीक गहरे भूरे से काले रंग के धब्बे।

में भी पाया जा सकता है

1 फसलें

मक्का

लक्षण

संक्रमण के कारण पत्तियों, डंठलों, आवरणों एवं छिलकों पर छोटे-छोटे, पीले एवं भूरे रंग के धब्बे उत्पन्न होते हैं। जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, धब्बे भी बड़े हो जाते हैं तथा उनकी संख्या और बढ़ जाती है। परिणामस्वरूप जो धब्बे या रोगग्रस्त ऊतकों की पट्टियां उत्पन्न होती हैं वे पत्ते का एक बड़े हिस्से पर छा सकती हैं। उनका रंग आमतौर पर पीले से लेकर भूरे रंग का होता है और वे विभिन्न प्रकार के ज़ंग से उत्पन्न होने वाले लक्षणों की याद दिलाते हैं। परंतु, ज़ंग रोगों के विपरीत, पी. मेडिस के घाव प्रायः पत्तियों में, विशेष रूप से उनके आधार पर, स्पष्ट पट्टियों में विकसित होते हैं। दूसरा अंतर यह है कि विशिष्ट गहरे भूरे से काले रंग के धब्बे मुख्य शिरा पर या इसके बेहद नज़दीक दिखाई देते हैं। संवेदनशील किस्मों में, बीच की शिरा इन घावों से ढँकी हो सकती है, तथा चॉकलेटी रंग से लाल-भूरे या बैंगनी रंग में बदल सकती है।

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जैविक नियंत्रण

फ़िलहाल पी. मेडिस के खिलाफ़ कोई जैविक उपचार उपलब्ध नहीं है। यदि आप कोई जैविक उपचार जानते हैं, तो कृपया हमें सूचित करें। इसकी मौजूदगी एवं संभावित प्रकोप से बचने हेतु स्थानीय नियंत्रण सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है।

रासायनिक नियंत्रण

उपलब्ध होने पर, हमेशा निवारक उपायों के साथ जैविक उपचारों के एक एकीकृत दृष्टिकोण पर विचार करें। पी. मेडिस के खिलाफ़ कोई विशेष रासायनिक उपचार उपलब्ध नहीं है क्योंकि यह कभी-कभार होता है तथा इसका उपज पर प्रभाव न्यूनतम होता है।

यह किससे हुआ

लक्षण फ़ायसोडर्मा मेडिस के कारण उत्पन्न होते हैं। यह एक ऐसा कवक है जो संक्रमित फसलों के कचरे या मिट्टी में (अनुकूल स्थितयों में लगभग 7 सालों तक) सर्दियां बिताता है। यह रोग उन खेतों में बहुत ही आम है जिसमें लगातार मक्का उगाया जाता है या जिनमें फसलों के अवशेष प्रचुरता में होते हैं, उदाहरण के लिए, उन खेतों में जहाँ बहुत ही कम जुताई की जाती है। संक्रमण सामान्यतः पत्तियों के गुच्छे में शुरू होता है, जहां वर्षा या सिंचाई के बाद पानी जमा हो जाता है। वहां से, द्वितीयक संक्रमण वायु या पानी की छींटों के माध्यम से दूसरे पौधों तक फैल जाता है। यही कारण है कि लक्षण पुरानी पत्तियों के आधार पर ज़्यादा स्पष्ट होते हैं। इसके लिए प्रकाश एवं तापमान की इष्टतम स्थितियों की भी आवश्यकता होती है। कुल मिलाकर, यह रोग गंभीर नहीं है और उपज पर इसका बहुत कम प्रभाव होता है।


निवारक उपाय

  • रोग के लक्षणों हेतु खेतों की नियमित रूप से निगरानी करें।
  • एक विस्तृत फसल चक्रीकरण का पालन करें, क्योंकि कवक संक्रमित फसल अवशेषों या संक्रमित मिट्टी में 2 से 7 साल तक जीवित रहता है।
  • फसल के अवशेषों को गहरी जुताई करके या उन्हें खेतों में उचित दूरी पर जलाकर नष्ट कर दें।

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