खीरा

खीरा वर्गीय फसलों का श्याम वर्ण रोग

Glomerella lagenarium

फफूंद

संक्षेप में

  • पत्तियों पर पानी से भरे, पीले से गोल धब्बे।
  • फल पर गोल, काले, गड्ढे।
  • पत्तियों पर पानी से भरे हुए पीलापन लिए हुए गोलाकार धब्बे।
  • फलों पर गोलाकार, काले, धँसे हुए गड्ढे।

में भी पाया जा सकता है

4 फसलें
खीरा
खरबूज
कद्दू
ज़ुकीनी

खीरा

लक्षण

पत्तियों पर लक्षण पानी से भरे धब्बों के रूप में शुरू होते हैं जो बाद में पीले से गोल धब्बे बन जाते हैं। इन धब्बों की मुख्य विशेषता यह है कि ये अनियमित होते हैं और बढ़ने पर गहरे भूरे या काले पड़ जाते हैं। तने पर भी विशिष्ट दाग होते हैं और बढ़ने पर ये संवहनी ऊतकों पर चारों तरफ से शिकंजा कस लेते हैं जिससे तने और लताएं मुरझा जाती हैं। फलों पर बड़े, गोल, काले और गड्ढेदार धब्बे दिखाई देते हैं जो बाद में कैंकर में बदल जाते हैं। तरबूज पर धब्बे 6 से 13 मिमी. तक व्यास के और 6 मिमी. गहरे तक हो सकते हैं। नमी की मौजूदगी में दाग़ का काला केंद्रीय भाग चिपचिपे गुलाबी रंग के बीजाणुओं के समूह से भरा रहता है। इसी प्रकार के दाग़ खरबूज और खीरा पर बनते हैं। गुलाबी रंग के ये कैंकर खीरा वर्गीय फसलों में इस रोग के सबसे विशिष्ट लक्षण होते हैं।

सिफारिशें

जैविक नियंत्रण

जैविक रूप से स्वीकृत कॉपर फार्मूलेशन का खीरा वर्गीय फसलों में रोग के विरुद्ध छिड़काव किया जा सकता है तथा इसके अब तक अच्छे नतीजे देखने को मिले हैं। जैविक नियंत्रण एजेंट बैसिलस सबटिलिस युक्त फार्मूलेशन भी उपलब्ध हैं।

रासायनिक नियंत्रण

हमेशा एक समेकित दृष्टिकोण से रोकथाम उपायों के साथ उपलब्ध जैविक उपचारों का इस्तेमाल करें। नियमित अंतराल पर फसल पर स्वीकृत कवकनाशकों का इस्तेमाल करें। बार-बार बारिश होने पर कई बार। उपलब्ध कवकनाशकों में क्लोरोथैलोनिल, बेनोमिल, मानेब और मैंकोज़ेब फार्मूलेशन शामिल हैं। क्लोरोथैलोनिल के साथ मैंकोज़ेब का मिश्रण पत्ती छिड़काव के लिए एक बहुत प्रभावी उपचार है।

यह किससे हुआ

पत्तियों और फलों पर लक्षणों का कारण फफूंद ग्लोमेरेला लैजिनेरियम है जो पिछली रोगित फसल के अवशेषों में शीत-शयन करता है या खीरा वर्गीय फसलों के बीजों से फैलता है। बसंत में जब मौसम में नमी बढ़ जाती है, फफूंद हवा से फैलने वाले बीजाणुओं को छोड़ता है जो कि मिट्टी के पास की लताओं और पत्तियों को संक्रमित करता है। फफूंद का जीवन चक्र मुख्यतः आसपास की नमी, पत्ती के गीलेपन और थोड़े अधिक तापमान, 24° सेल्सियस को सबसे उपयुक्त माना जाता है, पर निर्भर करता है। बीजाणु 4.4° सेल्सियस से नीचे या 30° सेल्सियस से ऊपर या फिर नमी की पर्त की गैरमौजूदगी में नहीं पनपते हैं। इसके साथ ही, रोगाणु को बीजाणुओं को फलन-काया के चिपचिपे आवरण से निकालने के लिए पानी अवश्य चाहिए। इस सबसे यह स्पष्ट हो जाता है कि श्याम वर्ण रोग आम तौर मध्य-काल में पौधे की कैनोपी विकसित होने के बाद ही क्यों जड़ें जमाता है।


निवारक उपाय

  • प्रमाणित, रोग-रहित बीजों का इस्तेमाल करें।
  • यदि आपके क्षेत्र में उपलब्ध हों तो प्रतिरोधी किस्मों को चुनें (बाज़ार में कई उपलब्ध हैं)।
  • खीरा वर्गीय फसलों का असंबंधित फसलों के साथ तीन वर्ष के फसल-चक्र में फसल चक्रीकरण करें।
  • प्रत्येक मौसम के अंत मे फलों एवं लताओं के नीचे की मिट्टी जोतकर खेत को अच्छी तरह से साफ-सुथरा रखें।
  • जब पत्तियां गीली हों तो खेत में मशीनों और श्रमिकों की आवाजाही न होने दें।
  • यदि ज़मीन के ऊपर सिंचाई आवश्यक है तो भोर में पानी दें तथा सुनिश्चित करें कि रात होने तक पत्तियां सूख जाएं।

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