Puccinia hordei
फफूंद
पहले लक्षण सर्दियों के अंत से लेकर वसंत की अवधि के दौरान पत्तियों के ऊपरी हिस्से पर इधर-उधर बिखरे हुए छोटे, गोलाकार, नारंगी-भूरे रंग के दानों के रूप में दिखाई देते हैं। इनमें वे बीजाणु होते हैं जो जौ के पौधों में संक्रमण का कारण बनेंगे। कभी-कभी ये छाले तनों, पत्तियों की खोल और बालियों पर भी फैल जाते हैं। छाले अक्सर पीले या हरे रंग से घिरे रहते हैं। मौसम में बाद में (वसंत के अंत में या गर्मियों की शुरुआत में) पत्तियों की निचली सतह पर धीरे-धीरे छोटे-छोटे काले दाने निकल आते हैं। इन नई थैलियों में बीजाणु होते हैं, जो बाद में फसल के नए किल्लों या मेज़बान पौधों में जीवित रहकर चक्र को दोबार शुरू करेंगे। हल्के भूरे छालों के विपरीत, काले वालों को जब रगड़ा जाता है, तो वे उंगलियों में नहीं लगते।
आज तक, जौ के भूरे रतुआ के लिए कोई जैविक नियंत्रण समाधान उपलब्ध नहीं है। अगर आपको इसके बारे में कोई भी जानकारी हो, तो कृपया हमसे संपर्क करें।
अगर उपलब्ध हों तो हमेशा निवारक उपायों और जैविक उपचार के मिलेजुले दृष्टिकोण पर विचार करें। प्रोथियोकोनाज़ोल पर आधारित सुरक्षात्मक कवकनाशी के साथ सही समय पर छिड़काव आमतौर पर भूरे रंग के रतुआ को नियंत्रित करने में मदद करेगा। जौ में पत्ती के रतुआ रोग के उपचार के लिए कई प्रकार के पर्ण फफूंदनाशक भी उपलब्ध हैं। सर्वोत्तम उपचार के लिए, पत्तियों में रतुआ दिखते ही, इन्हें लगाएं। अगर मौसम रतुआ रोगों के लिए अनुकूल है, तो अतिरिक्त प्रयोग की ज़रूरत पड़ सकती है।
लक्षणों का कारण कवक पुक्कीनिया होर्डी है, जो जौ में रतुआ पैदा करने वाले चार प्रकार के कवक में से एक है। ये जीव केवल हरे पौधों पर ही उग सकते हैं। पी. होर्डी के मामले में, यह देर से निकलने वाले किल्लों और स्टार ऑफ़ बेथलेहम (ऑर्निथोगेलम अम्बेलेटम) जैसे वैकल्पिक मेज़बानों पर गर्मियों में जीवित रहता है। ज़्यादा नमी और बार-बार बारिश के साथ गर्म तापमान (15 डिग्री से 22 डिग्री सेल्सियस) रोग के विकास में सहायक होते हैं, जबकि सूखे हवा वाले दिनों में बीजाणु फैलते हैं। जौ में भूरे रंग के रतुआ के गंभीर हमले मुख्य रूप से मौसम में देर से होते हैं, ख़ासकर अगर नाइट्रोजन की उच्च खुराक का इस्तेमाल किया गया हो। पछेती फसलों की तुलना में अगेती फसलों में संक्रमण ज़्यादा होता है, ख़ासकर तब जब रातों को गर्मी जारी रहती है। लेकिन, अगर फसल का इलाज कवकनाशी से किया जा रहा है, तो जौ का भूरा रतुआ शायद ही कभी एक समस्या बनता है।