धान

धान में फ़ोमा सॉर्घिना

Epicoccum sorghinum

फफूंद

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संक्षेप में

  • विकसित हो रही बालियों पर पानी से भरे धब्बे।
  • शूकों पर गहरे भूरे रंग के अंडाकार या टेढ़े-मेढ़े किनारे वाले धब्बे जिनका केंद्र सफ़ेद होता है (ग्लूम ब्लाइट)।
  • गंभीर मामलों में कमज़ोर किस्मों में 95% तक बालियां क्षतिग्रस्त हो जाती हैं।

में भी पाया जा सकता है

1 फसलें

धान

लक्षण

रोग के पहले लक्षण, विकसित हो रही बालियों पर पानी से भरे धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं। बाद में ये बड़े होकर गहरे भूरे किनारों वाले अंडाकार या टेढ़े-मेढ़े धब्बे बन जाते हैं जिनका केंद्र सफ़ेद होता है। यदि प्रकोप पुष्पगुच्छ निकलने से पहले होता है, तो बालियां सड़ जाती हैं और बाद में सूख जाती हैं। फूल आने के बाद लक्षण प्रकट होने पर बालियां पूरी तरह नहीं भरती हैं और शूकों (ग्लूम) पर टेढ़े-मेढ़े धब्बे नज़र आते हैं (ग्लूम ब्लाइट)। गंभीर मामलों में धान की कमज़ोर किस्मों में (जैसे कि चाइना बोरो) 95% तक पुष्पगुच्छ क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। भारी बारिश के साथ आंधी, पानी से लबालब भरे खेत और तेज़ धूप रोग को बढ़ावा देते हैं। ऊँचे इलाकों वाले धान में ग्लूम ब्लाइट कम आर्थिक महत्व का माना जाता है हालांकि अनियंत्रित छोड़े जाने पर रोग महामारी का रूप धारण कर सकता है।

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जैविक नियंत्रण

अभी तक इस रोग के होने या इसकी विकटता कम करने के लिए किसी जैविक नियंत्रण की जानकारी नहीं है। अगर आपको किसी ऐसे उपाय की जानकारी है, तो कृपया हमसे संपर्क करें।

रासायनिक नियंत्रण

हमेशा एक समन्वित दृष्टिकोण से रोकथाम उपायों के साथ उपलब्ध जैविक उपचारों का इस्तेमाल करें। कवकनाशकों का इस्तेमाल बीजों का उपचार करने और धान की कुछ किस्मों के कुदरती रूप से संक्रमित बीजों में पी. सॉर्घिना पर बेहतर नियंत्रण के लिए किया जा सकता है। आइप्रोडियोन और कैप्टन का भी इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन ये कम प्रभावी हैं।

यह किससे हुआ

लक्षणों का कारण बीज और मिट्टी जनित फफूंद एपिकोकम सॉर्घी है, जिसे पहले फ़ोमा सॉर्घिना कहते थे। यह एक मौक़ापरस्त जीव है जो कमज़ोर और अभावग्रस्त पौधों पर हमला करता है। यह मुख्य रूप से आर्थिक महत्व की फ़सलों जैसे ज्वार, बाजरा, गन्ना, और धान (ग्रैमिनी) से संबंधित है, पर फिर भी यह दुनिया भर में कई मेज़बान पौधों को प्रभावित कर सकता है। अकेसिया, एलो, सिट्रस और यूकैलिप्टस की कुछ प्रजातियां इनमें शामिल हैं। ऐसा माना जाता है कि फफूंद फ़सल अवशेषों में जीवित बचा रहता है, क्योंकि अफ्रीका में ये घास फूस के छप्परों और पशु चारे में फलते-फूलते भी पाया गया है। यह माइकोटॉक्सिन बनाता है जिससे पौधों में लक्षण विकसित होते हैं और यह इंसानों और मवेशियों की सेहत को भी नुकसान पहुंचा सकता है। इंसानों में पाए जाने वाले लक्षणों में त्वचा पर लाल चकत्ते, मुंह में छाले शामिल हैं, और कुछ मामलों में कैंसर भी हो सकता है।


निवारक उपाय

  • यदि उपलब्ध हों, तो सहनशील किस्मों का इस्तेमाल करें।
  • खेत में अच्छी जल निकासी सुनिश्चित करें।

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