Aspergillus niger
फफूंद
बीज बिना अंकुरित हुए सड़ जाते हैं और यदि अंकुरण होता भी है तो मूल संधि वाले हिस्से में पानी से भरे घावों के साथ सड़न आ जाती है। पौधों के क्षतिग्रस्त हिस्सों में भी पानी से भरे हुए घाव दिखाई देते हैं। लक्षण प्रभावित फसल के आधार पर भिन्न हो सकते हैं। प्याज़ में, अंकुरण के आरंभिक समय में ही अंकुर मूल संधि के हिस्से से सड़ जाते हैं। कंद के गूदे वाले ऊतकों में शिराओं के साथ मटमैली फफूँदी का विकास होता है। मूँगफली में, कवक के कारण मूल संधि या शीर्ष की सड़न होती है, जिसकी विशेषता जड़ों का मुड़ना और पौधे के ऊपरी भाग में विकृति है। बेलों में, आरंभिक लक्षणों में संक्रमण के स्थान पर सुई के सिरे जैसी लाल सी रस की बूँदें शामिल हैं। फसल कटने के बाद क्षति के कारण बदरंगपन, खराब गुणवत्ता और विभिन्न फसलों के व्यावसायिक मूल्य में कमी आना देखा जाता है।
मिट्टी को ट्राईकोडर्मा (खेतों की खाद से भरपूर) से भिंगोयें। नीम की टिकिया में भी कवकरोधी गुण होते हैं और ए. नाइजर के फैलाव को नियंत्रित करने के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है। बीजों को रोपाई से पूर्व गर्म पानी से 60 डिग्री सेल्सियस पर 60 मिनट के लिए शोधित करें। लाल शल्क वाली प्याज की प्रजाति में फेनोलिक यौगिक की उपस्थिति के कारण फफूँद रोधी गुण होते हैं।
हमेशा निरोधात्मक उपायों के साथ, यदि उपलब्ध हों, तो जैविक उपचारों के समन्वित उपयोग पर विचार करें। यदि कवकनाशकों की आवश्यकता हो, तो मेंकोज़ेब या मेंकोज़ेब और कार्बेंन्डाज़ीन के संयोजन से कवक की उपस्थिति के स्थान को भिंगोएं या इसके विकल्प के रूप में थीरम के मिश्रण का प्रयोग करें। अन्य सामान्य उपचारों में ट्राईज़ोल तथा एकीनोकेन्डिन कवकरोधक शामिल है।
काली फफूँदी एक आम कवक है जो विभिन्न प्रकार के स्टार्च वाले फलों और सब्ज़ियों पर दिखाई देती है। इसके कारण खाने की बर्बादी और हानि होती है। कवक एस्पेरगिलस नाइजर, हवा, मिट्टी और पानी से फैलता है। यह आम तौर पर एक मृतजीवी होता है जो मृत और सड़े हुए पदार्थों पर जीवित रहता है किंतु यह स्वस्थ पौधों पर भी जीवित रह सकता है। यह कवक भूमध्यसागरीय, उष्णकटिबंधीय तथा उपउष्णकटिबंधीय इलाकों में मिट्टी में आम तौर पर पाया जाता है। विकास के लिए अभीष्ट तापमान 20-40 डिग्री सेल्सियस है जबकि अच्छी बढ़त 37 डिग्री सेल्सियस पर होती है। साथ ही, फलों को सुखाने की प्रक्रिया में नमी की मात्रा कम हो जाती है और शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है जिसके कारण सुखे वातावरण में पनपने वाली फफूँदी के कवक को एक अनुकूल माध्यम मिलता है।