गेहूं

गेहूं का झुलसा रोग (व्हीट ब्लास्ट)

Magnaporthe oryzae

फफूंद

संक्षेप में

  • समय से पहले बालियों और शूकों का सफ़ेद पड़ जाना।
  • बालियों में सिकुड़े या खाली दाने या दाने न होना।
  • अक्सर पत्तियों पर आंख की आकृति जैसे मृत धब्बे जिनके केंद्र धूसर रंग के होते हैं।

में भी पाया जा सकता है

1 फसलें

गेहूं

लक्षण

गेहूं के पौधे के ज़मीन के ऊपर के सभी हिस्से प्रभावित हो सकते हैं, लेकिन समय से पहले शूकों का सफ़ेद पड़ जाना सबसे ख़ास लक्षण है। रोगाणु कुछ ही दिन में उपज खराब कर सकता है, जिससे किसानों को कुछ कर पाने का समय नहीं मिल पाता। फूल आने की अवस्था में शूकों में संक्रमण होने पर दाने नहीं पड़ते हैं। परंतु, दाने भरने के दौरान संक्रमण होने पर छोटे, सिकुड़े हुए और बदरंग दाने बनते हैं। पुरानी पत्तियों पर दो तरह के धब्बे नज़र आते हैंः मामूली रोग वाले मामलों में, काली चित्तियां और आंख जैसी आकृति वाले बड़े धब्बे होते हैं, जिनके केंद्र हल्के भूरे और किनारे गहरे रंग के होते हैं। वहीं, गंभीर रूप से प्रभावित पत्तियों में काली चित्तियां और छोटे भूरे धब्बे होते हैं, जिनके किनारे काले और कभी-कभी उनका हरा रंग उड़ा होता है। बालियों के लक्षण फ़्यूज़ेरियम ब्लाइट से काफ़ी मिलते-जुलते होते हैं और इसलिए इसकी पहचान करने में गलती हो सकती है।

सिफारिशें

जैविक नियंत्रण

आज तक खेत में एम. ओरिज़ी का कोई जैविक नियंत्रण तरीका नहीं मिला है। परंतु, धान में स्यूडोमोनस फ़्लोरेसेंस के मिश्रण से बीजोपचार और पत्तियों पर छिड़काव करने से ब्लास्ट रोग पर काबू पाया जा सकता है और दानों की उपज बढ़ सकती है।

रासायनिक नियंत्रण

हमेशा एक समेकित दृष्टिकोण से रोकथाम उपायों के साथ उपलब्ध जैविक उपचारों का इस्तेमाल करें। फूल आने या दाने पड़ने के दौरान ज़्यादा बारिश या ओस पड़ने से व्हीट ब्लास्ट को बहुत बढ़ावा मिलता है। इसलिए निवारक उपाय के तौर पर सर्वांगी कवकनाशकों का इस्तेमाल करने से पहले बारिश/ओस के लिए मौसम का पूर्वानुमान देख लें। फिर भी, कवकनाशकों से आधी सुरक्षा ही मिल पाती है। फूल आने के दौरान बारिश या ओस पड़ने से पहले ट्राईफ़्लॉक्सीस्ट्रॉबिन+टेब्यूकोनाज़ॉल सक्रिय तत्वों वाले घोलों का इस्तेमाल करें। हर साल, एक ही तरह से असर करने वाले रसायनों का इस्तेमाल न करें क्योंकि इससे प्रतिरोध बढ़ सकता है।

यह किससे हुआ

लक्षणों का कारण फफूंद मैग्नापोर्थे ओरिज़ी है जो बीजों और फ़सल अवशेषों में जीवित बचा रहता है। गेहूं के अलावा यह प्रजाति कई अहम फ़सलों जैसे जौ, धान व कई और पौधों को संक्रमित करती है। इस कारण इस पर काबू पाने में फ़सल चक्रीकरण काफ़ी हद तक बेअसर है। वर्तमान में उगाईं जा रहीं अधिकतर गेहूं की किस्में इस रोग का आसानी से शिकार बन जाती हैं। बालियां निकलने और दाने पड़ने के दौरान गर्म मौसम (18-30° सेल्सियस) और 80 फ़ीसदी से ऊपर नमी से भयंकर क्षति हो सकती है और कभी-कभी एक सप्ताह के अंदर सारी फ़सल नष्ट हो जाती है।


निवारक उपाय

  • अपने क्षेत्र/देश में क्वारंटीन (पृथकता) नियमों की जानकारी रखें।
  • किसानों और खेतीबाड़ी कार्यकर्ताओं को रोग के लक्षण पहचानने के बारे में शिक्षित करें।
  • किसी प्रमाणित स्रोत से ही बीजों का इस्तेमाल करें या बीजों में फफूंद का संक्रमण न होना सुनिश्चित करें।
  • प्रतिरोधी या सहनशील किस्मों का इस्तेमाल करें (बाज़ार में कई उपलब्ध हैं)।
  • पौधे के अवशेषों और अन्य मेज़बान पौधों को खेत से हटा दें।
  • नाइट्रोजन का अत्यधिक मात्रा में उपयोग न करें।
  • मेज़बान फ़सल का प्रतिरोध बढ़ाने के लिए सिलिका मिलाएं।
  • फूल आने या दाने भरने के दौरान बारिश से बचने के लिए बुवाई का समय आगे-पीछे करें।

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