Alternaria sp.
फफूंद
ए. अराकिडिस पत्तियों पर पीले आभामण्डल से चारों ओर घिरे छोटे, भूरे, अनियमित आकार के धब्बों को पैदा करता है। ए. टेनुसिमा पत्तियों के शीर्ष स्थानों पर ‘v‘ आकार में क्षति करता है। बाद में, यह काला-भूरा क्षतिग्रस्त हिस्सा मध्यशिरा तक फैल जाता है और पूरी पत्ती एक कुम्हलाए हुए झुलसे हुए स्थान के रूप में दिखाई देती है, भीतर की तरफ़ मुड़ जाती है और भुरभुरी (पत्ती का झुलसना) हो जाती है। ए. ऑल्टर्नेटा द्वारा पैदा किए गए घाव छोटे, आकार में गोल से लेकर टेढ़े तक होते हैं तथा पूरी पत्ती पर फैल जाते हैं। ये पहले क्लोरोसिस से ग्रस्त और पानी सोखे हुए होते हैं, लेकिन जैसे-जैसे ये बढ़ते हैं, ये गल जाते हैं और समीप की शिराओं को भी प्रभावित करते हैं (पत्तियों का धब्बा और शिराओं का गलना)। केन्द्रीय हिस्से शीघ्रता से सूख कर बिखर जाते हैं, पत्ती फटी हुई सी लगने लगती है, और इसके बाद पौधे से पत्तियाँ झड़ने लगती हैं।
इन रोगों के लिए अभी तक किसी प्रकार का प्रभावी वैकल्पिक उपचार नहीं पाया गया है।
अगर उपलब्ध हो, तो हमेशा जैविक उपचारों के साथ सुरक्षात्मक उपायों के संयुक्त दृष्टिकोण पर विचार करें। रसायन के द्वारा नियंत्रण उपायों में मेन्कोज़ेब और कॉपर आक्सीक्लोराइड का पत्तों पर छिड़काव करना शामिल है।
ये रोग अल्टरनेरिया प्रजाति के तीन मिट्टी में पैदा होने वाले फफूंदों के कारण होते हैं। संक्रमित बीज संक्रमण के प्रमुख स्रोत हो सकते हैं। अगर उनका रोपण किया जाता है और पर्यावरणीय स्थितियाँ अनुकूल हैं, तो गंभीर हानि हो सकती है। अतिरिक्त प्रसार हवा और कीटों के कारण होता है। 20° से. से अधिक का तापमान, लंबे समय तक पत्ती का गीला रहना, और अत्यधिक नमी इस रोग के फैलने के लिए अनुकूल होते हैं। बरसात के बाद के मौसम के दौरान सिंचित मॅंगूफलियों की फसलों पर इस रोग का फैलाव बढ़ सकता है। इस रोग के घटित होने और इस रोग की गंभीरता के आधार पर, फलियों और भूसे की उपज में क्रमशः 22 प्रतिशत और 63 प्रतिशत की कमी आ सकती है।