Sphaerulina oryzina
फफूंद
पत्तियों पर रेखीय घाव विकसित होते हैं, जो 2-10 मिमी लम्बे तथा आम तौर पर 1-1.5 मिमी से अधिक चौड़े नहीं होते। बढ़त की अक्ष पत्ती के समांतर होती है। घावों में गहरा कत्थई केंद्र होता है, जो किनारों तक पहुँचने तक धुंधला होने लगता है। छिलकों पर घाव पत्तियों जैसे ही होते हैं, जबकि भूसे तथा डंठल पर घाव छोटे होते हैं और तिरछे बढ़ते हैं। प्रतिरोधक प्रजातियों में संवेदनशील प्रजातियों की अपेक्षा घाव अधिक संकरे, छोटे और गहरे होते हैं। धब्बे विकास की बाद की अवस्थाओं में, पुष्पीकरण के ठीक पहले दिखाई देते हैं। इस रोग के कारण दाने जल्द पक सकते हैं और बीज या दाने एक बैंगनी-भूरे रंग से बदरंग हो जाते हैं। पौधों का गिरना भी देखा गया है।
माफ़ कीजिएगा, हम अभी स्फ़ेरुलिना ओरिज़िना के विरुद्ध कोई वैकल्पिक उपचार नहीं जानते हैं। यदि आप कुछ जानते हों जिससे इस रोग का सामना करने में मदद मिलती हो, तो कृपया हमसे संपर्क करें। हमें आपकी राय का इंतज़ार रहेगा।
हमेशा समवेत उपायों का प्रयोग करना चाहिए जिसमें रोकथाम के उपायों के साथ जैविक उपचार, यदि उपलब्ध हो, का उपयोग किया जाए। यदि खेतों में संकरे कत्थई धब्बों का ख़तरा हो, तो पौधे के विकास के विभिन्न चरणों में प्रोपिकोनाज़ोल का छिड़काव करना चाहिए।
यह रोग आम तौर पर पोटैशियम की कमी वाली मिट्टी में तथा 25-28 डिग्री से. तापमान वाले क्षेत्रों में होता है। यह चावल की फसल के विकास के बाद के चरणों में, दाने निकलने के चरण में दिखाई देता है। वैकल्पिक धारक कवक को जीवित रहने में सहायक होते हैं तथा चावल के नए पौधों को संक्रमित करते हैं। पौधे पुष्प निकलने के चरण के बाद से इसके प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं और पौधों के विकसित होने के साथ हानि बढ़ती जाती है।