धान

चावल की पत्तियों का झुलसना

Monographella albescens

फफूंद

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संक्षेप में

  • पत्तियों पर शीर्ष से आरम्भ होने वाले हल्के, पानी से भरे हुए घाव।
  • घावों के लगातार बढ़ने से पत्तियों की सतह झुलस जाती हैं।
  • पत्तियों का मुरझाना।

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लक्षण

पत्तियों के झुलसने के रोग से जुड़े लक्षण विकास के चरण, क़िस्म तथा पौधों के घनत्व के अनुसार बदलते हैं। अधिकांश मामलों में, पत्तियों के शीर्ष या किनारों में भूरे-हरे, पानी से भरे हुए घाव बनने शुरू हो जाते हैं। बाद में, घाव बढ़ते जाते हैं और पत्तियों के शीर्ष या किनारे से आरम्भ होते हुए हल्के धूप में जले हुए से तथा गहरे कत्थई रंग के छल्लेदार नमूने बनाते हैं। घावों के लगातार बढ़ने के कारण पत्तियों का एक बड़ा हिस्सा झुलस जाता है। प्रभावित क्षेत्र सूख जाते हैं जिसके कारण पत्ती पाले से ग्रस्त दिखाई देने लगती है। कुछ देशों में, घाव कभी-कभी ही छल्लेदार नमूनों में बढ़ते हैं तथा सिर्फ़ झुलसने का लक्षण ही दिखाई देता है।

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जैविक नियंत्रण

इस रोग के विरुद्ध अब तक कोई वैकल्पिक उपचार उपलब्ध नहीं है।

रासायनिक नियंत्रण

हमेशा समवेत उपायों का प्रयोग करना चाहिए, जिसमें रोकथाम के उपायों के साथ जैविक उपचार, यदि उपलब्ध हो, का उपयोग किया जाए। बीजों को थियोफ़ेनेट मिथाइल में डुबोने से एम. एल्बेसेंस का संक्रमण कम होता है। खेतों में, मेंकोज़ेब, थियोफ़ेनेट मिथाइल (1.0 ग्राम प्रति लीटर के हिसाब से) या कॉपर क्लोराइड का पत्तियों पर छिड़काव करने से पत्तियों के झुलसने को काफ़ी हद तक कम किया जा सकता है। इन रसायनों का मेल भी कारगर रहता है।

यह किससे हुआ

रोग का विकास प्रायः मौसम में देर से विकसित पत्तियों पर होता है और आर्द्र मौसम, नाइट्रोजन उर्वरक की अधिक मात्रा तथा पौधों के बीच की कम जगह इस रोग के बढ़ने में सहायक होती है। नाइट्रोजन की मात्रा 40 किलोग्राम/हेक्टेयर तथा इससे अधिक होने पर पत्तियों के झुलसने की अधिक घटनाएं होती हैं। यह अप्रभावित पत्तियों की अपेक्षा प्रभावित पत्तियों में अधिक तेज़ी से फैलता है। संक्रमण का स्त्रोत बीज तथा पूर्ववर्ती फसल के अवशेष होते हैं। पत्तियों के झुलसने से पत्तियों को पाला लगने वाले रोग का अंतर पता करने के लिए कटी हुई पत्तियों को साफ़ पानी में 5-10 मिनट के लिए डुबो दें, यदि कोई रिसाव नहीं होता है तो यह पत्तियों का झुलसना ही है।


निवारक उपाय

  • जब उपलब्ध हों, तो प्रतिरोधक प्रजातियों का प्रयोग करें।
  • रोपण के समय, पौधों के बीच की दूरी को थोड़ा और बढ़ा दें।
  • मिट्टी में सिलिकॉन के स्तर को बरक़रार रखने के परिणामस्वरूप अधिक उपज तथा रोग में कमी होती है।
  • नाइट्रोजन की अत्यधिक उच्च दर के प्रयोग से बचें।
  • डंठल निकलने के समय नाइट्रोजन का किश्तों में उपयोग करें।
  • चावल के खूंटों के नीचे जुताई करें और चावल के संक्रमित नए अंकुरों को हटा दें।

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