धान

चावल का उड्बट्टा रोग

Balansia oryzae-sativae

फफूंद

संक्षेप में

  • पत्तियों पर पुष्पगुच्छों में विकृति।
  • ऊपरी पत्तियाँ तथा पत्तियों के खोल सफ़ेद चटाई जैसे कवकजाल से ढक जाते हैं और चांदी जैसे रंग के दिखते हैं।
  • अवरुद्ध विकास।

में भी पाया जा सकता है

1 फसलें

धान

लक्षण

लक्षण सबसे पहले पुष्प गुच्छों के निकलने के समय दिखाई देते हैं। संक्रमण सभी हिस्सों में और सभी शाखाओं में होता है। संक्रमित पौधे प्रायः छोटे रह जाते हैं और इनकी विशेषता एक सफ़ेद कवकजाल होता है जो पुष्पगुच्छों की शाखाओं को आपस में बाँध देता है। पुष्पगुच्छ खोल में से एकल, सीधे, मैले रंग की गोलाकार छड़ जैसे नज़र आते है। ऊपरी पत्तियाँ तथा पत्तियों के खोल भी विकृत हो सकते हैं और चांदी जैसे रंग के दिखते हैं। सफ़ेद कवकजाल शिराओं के साथ संकरी धारियां बनाता है। प्रभावित बाली में कोई दाना नहीं बनता।

सिफारिशें

जैविक नियंत्रण

बुआई से पूर्व 10 मिनटों के लिए 50-54 डिग्री से. पर बीजों का गर्म पानी से उपचार रोग पर प्रभावी नियंत्रण देता है। बीजों का सौर उपचार भी उनमें रोगजनक को मारने में प्रभावी है।

रासायनिक नियंत्रण

हमेशा समवेत उपायों का प्रयोग करना चाहिए जिसमें रोकथाम के उपायों के साथ जैविक उपचार, यदि उपलब्ध हो, का उपयोग किया जाए। केप्टान या थिराम को बीजों के उपचार के लिए प्रयोग किया जा सकता है। औरियोफ़ंगिन (एक कवकरोधी एंटीबायोटिक), तथा मेंकोज़ेब के विभिन्न संयोजन रोग के प्रकोप को कम करते हैं तथा विभिन्न प्रजातियों के चावलों में कभी-कभी दानों की पैदावार भी बढ़ाते हैं। थिराम द्वारा अकेले या इसके उपरान्त किसी अन्य कवकनाशक द्वारा मिट्टी का उपचार, बीजों के उपचार की अपेक्षा उड्बट्टा रोग की संभावना कम करने में बेहतर है तथा इससे चावल की पैदावार भी बढ़ाई जा सकती है।

यह किससे हुआ

दक्षिण भारत के अनेक भागों में यह बड़े पैमाने पर होता है। बहुत जल्द या देर से बुआई की जाने वाली फसलों में रोग का प्रकोप कम होता है। रोपाई से पहले बीजों पर या चावल की पत्तियों पर तथा आसपास अन्य धारकों पर कवक उपस्थित रहता है। फसल कटने के बाद अवशेष पर कवक के बीजाणु जीवित रहते हैं और हवा या पानी के द्वारा फैलते हैं। ईसाचने एलेगेंस, सिनाडोन डेक्टिलोन, पेनिसेटम तथा एराग्रोस्टिस टेनुफ़ोलिया जैसी घास इसके सहयोगी धारक हैं। ऊष्ण तापमान तथा उच्च आर्द्रता में ये पनपता है। पौधे के सभी चरणों में से रोपाई तथा छोटे पौधे का विकास सर्वाधिक प्रभावित होता है। हालांकि, लक्षण सबसे पहले पुष्प गुच्छों के निकलने के समय दिखाई देते हैं।


निवारक उपाय

  • रोग मुक्त बीज तथा प्रतिरोधक प्रजातियों का उपयोग करें।
  • उन खेतों के बीजों का प्रयोग न करें जहाँ रोग का प्रकोप हुआ हो।
  • खेतों में रोग ग्रस्त पुष्पगुच्छों की निगरानी रखें तथा उन्हें हटा दें।
  • जुताई जल्दी या देर से करें।
  • खेतों तथा उसके आसपास से संभावित सहायक धारकों को हटा दें।

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