धान

बाकाने तथा आधार सड़न

Gibberella fujikuroi

फफूंद

संक्षेप में

  • आम तौर पर बाकाने अंकुरों का एक रोग है, किन्तु इसे पौधे के विकास की प्रत्येक अवस्था में देखा जा सकता है।
  • अंकुर पीली, दुर्बल तथा सूखी पत्तियों वाले असामान्य रूप से लम्बे पौधों के रूप में विकसित होते हैं।
  • संक्रमित पौधों के तनों में कत्थई धब्बे बनने लगते हैं।
  • तनों की ऊपरी गांठों से नई जड़ें विकसित हो सकती हैं।
  • संक्रमित पौधों में आंशिक रूप से भरे हुए, बंजर तथा खाली दाने विकसित होते हैं।

में भी पाया जा सकता है


धान

लक्षण

बाकाने विशिष्ट तौर पर अंकुरों का रोग है, किन्तु इसे पौधों के विकास के प्रत्येक चरण में देखा जा सकता है। कवक पौधों को जड़ों या शीर्ष से संक्रमित करता है तथा फिर पौधे में प्रणालीगत रूप से तनों में बढ़ता है। यदि वे प्रथम चरण के संक्रमण से बच जाते हैं, तो ये अंकुर पीली, दुर्बल तथा सूखी पत्तियों और कम शाखाओं वाले असामान्य रूप से लम्बे पौधों के रूप में विकसित होते हैं। तने का भीतरी हिस्सा सड़ जाता है तथा तने की ऊपरी गांठों से नई जड़ें उत्पन्न होने लगती हैं। यदि पौधा विकसित होने की अवस्था तक जीवित रहता है, तो उसमें आंशिक रूप से भरे, बंजर या खाली दाने पैदा होते हैं। ऐसे पौधों में, सबसे ऊपर की पत्ती उसकी ऊंचाई तथा अधिक क्षैतिज झुकाव के कारण पहचानी जा सकती है।

सिफारिशें

जैविक नियंत्रण

आज तक इस रोग के किसी जैविक उपचार का पता नहीं चला है। भिंगोने के समय नमक के पानी का उपयोग हल्के (संक्रमित) बीजों से स्वस्थ बीजों को अलग करने के लिए किया जा सकता है।

रासायनिक नियंत्रण

हमेशा समवेत उपायों का प्रयोग करना चाहिए जिसमें रोकथाम के उपायों के साथ जैविक उपचार, यदि उपलब्ध हो, का उपयोग किया जाए। संक्रमित बीजों को ट्राईफ़्लुमिज़ोल, प्रोपिकोनाज़ोल, प्रोक्लोराज़ (अकेले या थिरम के साथ) वाले कवकरोधकों में पांच घंटों तक भिंगोकर रखना प्रभावी हो सकता है। बीजों का सोडियम हाइपोक्लोराइट (ब्लीच) से उपचार भी रोग की संभावना को कम करता है। ऊपर बताए गए यौगिकों को वनस्पति चरण के दौरान साप्ताहिक अंतरालों पर दो बार छिड़कना भी रोग के निंयत्रण में सहायक होता है।

यह किससे हुआ

बाकाने बीजों से होने वाला कवकीय रोग है। यह रोग प्रायः संक्रमित (अर्थात, कवकीय बीजाणुओं से भरे हुए बीज) बीजों के प्रयोग करने से होता है, किन्तु यह रोगजनक के पौधों के अवशेषों या मिट्टी में उपस्थित होने पर भी हो सकता है। इसका प्रसार हवा तथा पानी से होता है, जो कवकीय बीजाणुओं को एक पौधे से अन्य पौधों तक ले जाते हैं। बाकाने का प्रसार कृषि कार्यों के द्वारा, जैसे कि संक्रमित पौधों को काटते समय कवकीय बीजाणुओं के स्वस्थ बीजों तक फैलने से, तथा बीजों को कवक युक्त पानी में भिंगोने से भी हो सकता है। 30 से 35 डिग्री से. का उच्च तापमान रोग के फैलाव में सहायक होता है।


निवारक उपाय

  • रोग की संभवना कम करने के लिए स्वच्छ बीजों का प्रयोग करें।
  • उपलब्ध प्रतिरोधक प्रजातियों के बारे में पता करें।
  • अपने अंकुरों पर निगरानी रखें तथा दुर्बल, रंगहीन पौधों को रोपने से बचें।
  • नाइट्रोजन से भरपूर उर्वरकों के अत्यधिक प्रयोग से बचें।
  • मिट्टी को यू.वी. प्रकाश के संपर्क में लाने के लिए रोपाई से पूर्व खेतों की गहरी जुताई करें।
  • रोपने से पहले जुताई कर पूर्ववर्ती फसलों के ठूंठों को नष्ट कर दें।

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