काला और हरा चना

उड़द दाल के नासूर (एन्थ्राकनोज़)

Colletotrichum lindemuthianum

फफूंद

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संक्षेप में

  • छोटे, अनियमित, पीले से भूरे रंग के पानी से लथपथ धब्बे पत्तियों, तनों, डंठलों या फलियों पर दिखने लगते हैं।
  • धब्बों का गाढ़े रंग के केंद्रों और पीले, नारंगी या उज्ज्वल लाल किनारों के साथ धब्बेदार घावों में विलय हो जाता है।
  • तने और डंठल पर नासूर दिखाई देते हैं, जिसके बाद पत्तियाँ झड़ जाती हैं।

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काला और हरा चना

लक्षण

संक्रमण किसी भी विकास के चरण में हो सकता है और पत्तियों, तनों, डंठल और फली पर दिखाई देता है। अगर बीजों के अंकुरण के बाद संक्रमण होता है या यदि बीज संक्रमित होते हैं, तो अंकुर छोटे-छोटे ज़ंग जैसे धब्बे दिखाते हैं जो धीरे-धीरे आंखों के आकार (आई-स्पॉट) के हो जाते हैं और फिर अंत में पूरी तरह अंगमारी से ग्रस्त दिखने लगते हैं। पुराने पौधों पर, प्रारंभिक लक्षण छोटे और अनियमित काले भूरे रंग से लेकर काले, पानी से लथपथ धब्बों के रूप में दिखते हैं, आमतौर पर पत्तियों की निचली सतह या डंठल पर। समय के साथ, धब्बे धंसे हुए घावों में बदल जाते हैं, जिनके गाढ़े रंग के केंद्र और पीले, नारंगी या उज्ज्वल लाल किनारे होते हैं, और यह पत्तियों की ऊपरी सतह पर भी दिखाई देते हैं। फली पर ज़ंग के रंग के घाव होते हैं और वे सिकुड़ कर सूख सकते हैं। भारी संक्रमण के मामले में, प्रभावित हिस्से सूखकर मुरझा सकते हैं। तनों और डंठलों पर नासूर के विकास के बाद आमतौर पर पत्तियां झड़ जाती हैं।

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जैविक नियंत्रण

जैविक कारक संक्रमण को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं। कवक ट्रायकोडर्मा हर्ज़ियेनम और बैक्टीरिया स्यूडोमोनस फ़्लुरेसेन्स का उपयोग कोलेटोट्रिचम लिंडेमुथियेनम के विरुद्ध बीज उपचार के रूप में किया जाता है। कवकनाशी स्प्रे में कॉपर ऑक्सिक्लोराइड (3 ग्राम प्रति लीटर) पर आधारित उत्पादों का 15 दिनों के अंतराल पर उपयोग किया जा सकता है।

रासायनिक नियंत्रण

यदि उपलब्ध हो, तो जैविक उपचार के साथ निवारक उपायों के एकीकृत दृष्टिकोण पर हमेशा विचार करें। मौसम की स्थिति के आधार पर बीमारी के रासायनिक उपचार आर्थिक रूप से अव्यवहार्य हो सकते हैं। बीजों का उपयुक्त कवकनाशकों द्वारा उपचार किया जा सकता है, उदाहरण के लिए, 2 ग्राम/लीटर पानी थिरैम 80% वेटेबल पाउडर (गीला करने योग्य चूर्ण) या 2.5 ग्राम/लीटर पानी कार्बेन्डेज़िम वेटेबल पाउडर। कवकनाशी स्प्रे में फ़ॉल्पेट, मेन्कोज़ेब, थियोफ़ेनेट मिथाइल (0.1%) या कॉपर ऑक्सिक्लोराइड (3 ग्राम प्रति लीटर) पर आधारित उत्पादों का 15 दिनों के अंतराल पर उपयोग किया जा सकता है।

यह किससे हुआ

कवक कोलेटोट्रिचम लिंडेमुथियेनम मिट्टी में और संक्रमित बीज और पौधे के मलबे पर जीवित रहता है। यह सर्दियों में वैकल्पिक धारकों में भी रहता है। बढ़ते हुए अंकुरो तक बीजाणु बारिश, ओस या खेती के कार्यों के माध्यम से फैलते हैं, जब पत्तियां गीली होती हैं। इसी लिए ज़रूरी है कि जब पत्तियाँ बारिश और ओस की वजह से गीली हों, तो खेती के काम कम किए जाएं (श्रमिक, उपचार...आदि)। ठंडे से मध्यम तापमान (13-21 डिग्री सेल्सियस) और बार-बार की वर्षा भी कवक और उसके फैलाव के लिए अनुकूल है, जिसके परिणामस्वरूप संक्रमण की संभावना और तीव्रता बढ़ जाती है।


निवारक उपाय

  • प्रमाणित रोगजनक-मुक्त बीज सामग्री उपयोग करें।
  • सहनशील, सहिष्णु या प्रतिरोधी किस्में लगाएं।
  • रोग के किसी भी लक्षण के लिए अपने पौधों या खेतों की जांच करें।
  • अपनी फ़सल के पास अत्यधिक खरपतवार के विकास से बचें (ये वैकल्पिक धारक के रूप में काम कर सकते हैं)।
  • खेत को स्वच्छ रखें।
  • जब पत्तियाँ गीली हों, तो खेत में काम न करें, और अपने औज़ार और उपकरण साफ़ रखें।
  • हर तीन साल पर गैर-धारक फसलों के साथ फ़सल चक्रीकरण की सिफ़ारिश दी जाती है।
  • कटाई के बाद संक्रमित पौधे के मलबे को दफ़ना दें या उसे निकालकर जला दें।

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