Gaeumannomyces graminis
फफूंद
टेक-ऑल रोग कवक जी. ग्रेमिनिस के कारण होता है, जिसके आरंभिक लक्षण जड़ों तथा तनों के ऊतकों का काला होना और विशिष्ट हरितहीन निचली पत्तियां होते हैं। यदि पौधे इस चरण से जीवित बच जाते हैं, तो वे कमज़ोर हो कर बढ़ते हैं या बिलकुल नहीं बढ़ते और जड़ों में काले घाव दर्शाते हैं जो बाद में ऊपरी ऊतकों तक पहुंच जाते हैं। जड़ों के ऊतकों के साथ काले रंग के कवक का विकास नज़र आता है। अत्यधिक वर्षा के क्षेत्रों तथा सिंचित खेतों में इस रोग के कारण कई सफ़ेद बालियों वाले गेहूं के पौधों के बड़े समूह बनने लगते हैं। पौधों को मिट्टी से आसानी से खींचा जा सकता है क्योंकि उनकी जड़ों में बहुत अधिक गलन होती है, और वे इस चरण तक लगभग काली पड़ जाती हैं। संक्रमित पौधे नुचे हुए दाने उत्पन्न करते हैं, जो प्रायः काटने लायक नहीं रहते।
सूडोमोनस परिवार के विभिन्न जीवाणु रोगवाहक को प्रभावी रूप से दबाते हैं। वे प्रतिजैविक या एंटीबायोटिक का उत्पादन करते हैं तथा लौह जैसे आवश्यक पोषक तत्वों के लिए प्रतिद्वंदिता करते हैं। जीवाणु उत्पन्न करने वाले फ़ेनाज़ाइन या 2, 4 डायासिटायलफ़्लोरोग्लुसिनोल टेक-ऑल रोग के विरुद्ध प्रभावी सिद्ध हुए हैं। प्रतिरोधी कवक प्रजातियों का भी प्रयोग किया जा सकता है, उदाहरण के लिए, गैर-रोगजनक ग्युमेनोमाइसेस ग्रेमिनिसस प्रजाति ग्रेमिनिस। ये गेहूं के बीजों को ढाक देते हैं और रोगजनक के विरुद्ध प्रतिरोध बढ़ाते हैं।
हमेशा समवेत उपायों का प्रयोग करना चाहिए, जिसमें रोकथाम के उपायों के साथ जैविक उपचार, यदि उपलब्ध हो, का उपयोग किया जाए। जी. ग्रेमिनिस को नष्ट करने के लिए सिल्थियोफ़ेम तथा फ़्लुक्विनकोनाज़ोल वाले कवकरोधकों का प्रयोग किया जा सकता है। स्टेरोल-रोधक कवकरोधी तथा स्ट्रोबिलुरिन का प्रयोग भी टेक-ऑल के लक्षणों को दबाने में प्रभावी हैं।
इसके लक्षण कवक ग्युमेनोमाइसेस ग्रेमिनिस के कारण होते हैं, जो दो फ़सलों के मध्य पौधौं के अवशेषों में या मिट्टी में जीवित रहते हैं। यह जीवित धारकों की जड़ों को संक्रमित करते हैं और जैसे-जैसे जड़ें मरती हैं ये मृत ऊतकों पर बस जाते हैं और इससे भोजन ग्रहण करते हैं। यह तब फलते-फूलते हैं जब फसल काटने और नए पौधों को रोपे जाने के मध्य अपेक्षकृत कम समय (सप्ताह या कुछ महीने) रखा जाता है। बीजाणु हवा, पानी, पशुओं और खेती के औज़ारों और मशीनों के द्वारा फैलते हैं। ये जीवाणु प्रतिद्वंदियों के प्रति अपेक्षाकृत अधिक संवेदनशील होते हैं और मिट्टी के देशी सुक्ष्म जीवियों के साथ जीवित नहीं रह पाते। यह ऊष्मा से निष्क्रिय भी हो जाते हैं।