गन्ना

गन्ने के मुरझाने का रोग

Gibberella fujikuroi

फफूंद

संक्षेप में

  • पौधे का हल्के रंग से बदरंग होना।
  • रुका हुआ या अवरुद्ध विकास।
  • गहरे लाल से लेकर बैंगनी गांठें।
  • खोखले और सूखे हुए गन्ने के डंठल।

में भी पाया जा सकता है

1 फसलें

गन्ना

लक्षण

रोग प्रायः विकास की अवस्था के समाप्त होने के बाद प्रकट होता है। पत्तियाँ, आधार से आरम्भ करते हुए, पीली-हरी हो जाती हैं, अपनी मज़बूती खो देती हैं और अंत में सूख जाती हैं। शीर्ष की पत्तियाँ सफ़ेद हो जाती हैं या पीली-सी मध्यशिराएं तथा फीके हरे किनारे दिखाती हैं। प्रभावित गन्ने छोटे, वज़न में हल्के होते हैं तथा गांठों के मध्य का स्थान खोखला हो जाता है, किन्तु गांठें और कलियाँ अप्रभावित रहती हैं। लम्बवत काटने पर गांठों में विकास के छल्लों के ठीक ऊपर गहरे लाल से बैंगनी रंग के अंदरूनी ऊतक दिखते हैं। गंभीर मामलों में उपज काफ़ी हद तक कम हो जाती है।

सिफारिशें

जैविक नियंत्रण

बीजों का 54 डिग्री सेल्सियस पर नम गर्म हवा से 150 मिनट तक उपचार करें। उसके बाद, बीजों को 0.1 % ब्लीच के घोल में 10 से 15 मिनटों के लिए डुबो दें। कृपया स्वच्छता का ध्यान रखें तथा दस्तानों के साथ-साथ सुरक्षा चश्मा भी पहनें। बाद में, बर्तन को घर के कार्यों के लिए प्रयोग न करें।

रासायनिक नियंत्रण

हमेशा समवेत उपायों का प्रयोग करना चाहिए, जिसमें रोकथाम के उपायों के साथ जैविक उपचार, यदि उपलब्ध हों, का उपयोग किया जाए। गन्ने में मुरझाने के रोग के लिए कोई भी रासायनिक उपचार प्रभावी नहीं है।

यह किससे हुआ

पौधों में लक्षण मानसून के समय या उसके बाद दिखाई देते हैं। कवक मुख्यतः रूट बोरर (तना छिद्रक), दीमक, स्केल, मीली बग इत्यादि अन्य कीटों द्वारा की गई चोटों के ज़रिये प्रवेश करता है। सूखा और पानी का जमाव जैसे जैविक दबाव पौधों को मुरझाने के रोग के प्रति संवेदनशील कर देते हैं। उच्च तापमान और कम आर्द्रता के साथ नमी का दबाव पौधों की मुरझाने के रोग के प्रति प्रतिरोधक क्षमता को कम कर देता है।


निवारक उपाय

  • प्रमाणित स्त्रोतों से बीजों तथा रोपने के लिए छोटे पौधों को प्राप्त करने का ध्यान रखें।
  • गैर-धारक फसलों के साथ चक्रीकरण की सलाह दी जाती है।
  • खेतों में अधिक उर्वरकों, विशेषकर नाइट्रोजन, के प्रयोग से बचें।
  • कार्य करते समय पौधों को चोट पहुंचाने से बचें।
  • खेतों को अच्छी जलनिकासी प्रदान करें तथा आवश्यकता से अधिक पानी न दें।
  • फसल काटने के बाद पुराने पौधों के अवशेषों को हटा दें।

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