शिमला मिर्च एवं मिर्च

मिर्च का झुलसा रोग (ब्लाइट)

Phytophthora capsici

फफूंद

संक्षेप में

  • बीजांकुर में नमी से सड़न।
  • तने पर काले या भूरे रंग का घाव।
  • पौधों के सभी हिस्से प्रभावित होते हैं।
  • जड़ें गहरे कत्थई रंग की और पिलपिली हो जातीं हैं।
  • पत्तियों और फलों पर गहरे हरे से कत्थई रंग के पानी सोखे हुए धब्बे।
  • मुरझाना और अवरुद्ध विकास।

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शिमला मिर्च एवं मिर्च

लक्षण

शुष्क जगहों पर, संक्रमण ज़्यादातर पौधे की जड़ों और शीर्ष पर दिखाई देता है। एक विशेष काला या भूरा घाव तने पर मृदा रेखा के पास दिखता है। उच्च सापेक्ष आर्द्रता में, पौधे के सभी हिस्से प्रभावित होते हैं। संक्रमित जड़ें गहरी भूरी और पिलपिली हो जाती हैं, और अंकुर इस नमी के कारण सड़ जाते हैं (डैम्पिंग-ऑफ़)। गहरे हरे से भूरे पानी सोखे हुए धब्बे पत्तियों और फलों पर दिखते हैं। बड़े पौधों में जड़ों से जुड़ा पौधे के तने का हिस्सा सड़ जाता है। गहरे भूरे घाव तने पर हो जाते हैं और इससे पौधा मर जाता है। खेत पर कटाई के बाद या भण्डारण के समय फल सड़ जाते हैं।

सिफारिशें

जैविक नियंत्रण

बैक्टीरिया बरखोल्डेरिया सेपासिया (एमपीसी -7) का फ़ायटोफ़्थोरा कैप्सिकि के विरुद्ध अपने विरोधी प्रभाव के लिए सकारात्मक परीक्षण किया गया है।

रासायनिक नियंत्रण

यदि उपलब्ध हों, तो जैविक उपचार के साथ बचाव के उपाय भी साथ में करें। मेफ़ेनॉक्सम युक्त उत्पादों को रोपण के समय स्प्रे करने से, और दो सप्ताह के बाद एक निश्चित तांबा कवकनाशी लगाने से, पत्तियां आने के समय रोग के संक्रमण को रोका जा सकता है। जब जड़ से जुड़े तने के हिस्सों में सड़न के लक्षण दिखाई देते हैं, तब मेफ़ेनॉक्सम का उपयोग ड्रिप सिंचाई प्रणालियों में भी किया जा सकता है ताकि फल के नुकसान को कम किया जा सके।

यह किससे हुआ

फ़ायटोफ़्थोरा कैप्सिकि एक मिट्टी में पैदा होने वाला रोगजनक है जो प्रतिकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों में भी ज़िंदा रह सकता है। यह वैकल्पिक परपोषियों या मिट्टी में पौधे के मलबे में तीन साल तक ज़िंदा रह सकता है। यह बाद में सिंचाई या सतह के पानी से फैल जाता है। पी. कैप्सिकि 7° सेल्सियस और 37° सेल्सियस के बीच के तापमान पर बढ़ता है, इसके पनपने के लिए लगभग 30° सेल्सियस सबसे अच्छा तापमान है। उच्च तापमान और उच्च आर्द्रता की आदर्श स्थितियों में, रोग बहुत तेज़ी से बढ़ सकता है। कम तापमान में रोग का फैलना कम होता है।


निवारक उपाय

  • यदि संभव हो, तो मिट्टी की पीएच जाँचें और चूने से समायोजित करें।
  • खेत तैयार करते समय मिट्टी में खाद डालें।
  • यदि आपके क्षेत्र में उपलब्ध हों, तो प्रतिरोधक और सहनशील किस्में बोयें।
  • ज़्यादा सिंचाई न करके मिट्टी के संघनन को कम करें।
  • अच्छी जलनिकासी के लिए गुम्बद के आकार की उभरी हुई क्यारियों का उपयोग करें।
  • सुनिश्चित करें कि रोपण के बाद पौधे के आधार पर कोई गड्ढा न हो।
  • मिट्टी की नमी को निंरतर बनाए रखने के लिए प्लास्टिक पलवार का उपयोग करें।
  • खेत और उसके आसपास खरपतवार और अन्य धारक पौधों को हटा दें।
  • नाइट्रोजन की विभाजित ख़ुराक़ के साथ संतुलित उर्वरीकरण सुनिश्चित करें।
  • सुबह के समय नियमित रूप से पानी दें ताकि पौधे दिन के समय के दौरान सूख सकें।
  • खेत में अच्छी स्वच्छता बनाए रखें, विशेषकर पानी की गुणवत्ता, कपड़ों और औज़ारों के मामले में।
  • गैर-संवेदनशील पौधों के साथ 2-3 साल का फ़सल चक्रीकरण लागू करें।

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