गन्ना

गन्ने का अनन्नास रोग

Ceratocystis paradoxa

फफूंद

संक्षेप में

  • गांठों के भीतर हरित हीन।
  • प्रथम सप्ताहों में, संक्रमित तनों में से अधिक पके हुए अनन्नास की सी गंध आती है।
  • टहनियाँ धीरे-धीरे सड़ने लगती हैं तथा जडें नहीं बनती।

में भी पाया जा सकता है

3 फसलें

गन्ना

लक्षण

रोपाई के पदार्थों में कवक का प्रवेश कटे हुए सिरों या कीटों द्वारा पैदा किये गए घावों के द्वारा होता है। उसके बाद यह अंदरूनी ऊतकों में तेज़ी से फैलता है। ये पहले लाल होते हैं तथा बाद में कत्थई-काले या काले रंग के हो जाते हैं। इस सड़न की प्रक्रिया से छिद्र बनते हैं तथा अधिक पके हुए अनन्नास की विशिष्ट गंध निकलती है। यह गंध कई सप्ताह तक रह सकती है। संक्रमित फसल की जड़ें बनना बंद हो जाती हैं, प्रारम्भिक कलियाँ विकसित नहीं हो पाती हैं तथा जो विकसित होती भी हैं, वे मर जाती हैं अथवा छोटी रह जाती हैं।

सिफारिशें

जैविक नियंत्रण

मौसम में देर से रोपाई करने की स्थिति में, डंठलों का रोपने से पूर्व गर्म पानी (51 डिग्री सेल्सियस पर) में 30 मिनटों तक उपचार किया जाना चाहिए। खेतों में उन डंठलों को ढूंढें जो अंकुरित न हुए हों, और उन्हें तोड़ कर उनमें रोग के चिन्ह (सड़न तथा दुर्गन्ध) की जांच करें।

रासायनिक नियंत्रण

हमेशा समवेत उपायों का प्रयोग करना चाहिए, जिसमें रोकथाम के उपायों के साथ जैविक उपचार, यदि उपलब्ध हो, का उपयोग किया जाए। कवक रोधकों से उपचार आर्थिक रूप से अनुकूल नहीं होता है।

यह किससे हुआ

रोपाई के प्रथम सप्ताह के बाद कीट आता है। कवक हवा या पानी तथा सिंचाई के पानी से बीजाणुओं के द्वारा फैलता है। कीट, विशेषकर गुबरैला, डंठलों में छिद्र कर बीजाणुओं को फैलाते हैं। बीजाणु मिट्टी में कम से कम एक वर्ष तक जीवित रह सकते हैं। संक्रमित पौधों में ये कई महीनों तक जीवित रह सकते हैं। वे स्थान जहाँ वर्षा के बाद जल जमा रह जाता है रोग के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ा सकते हैं। कवक के विकास तथा बीजाणुओं के निर्माण के लिए 28 डिग्री सेल्सियस के आसपास का तापमान सर्वाधिक अनुकूल होता है। लम्बे समय तक सूखा भी गन्ने की जीवाणुओं के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ाता है।


निवारक उपाय

  • प्रतिरोधक प्रजातियों को उगायें।
  • कम से कम तीन गाँठ लम्बे स्वस्थ रोपाई वाली डंठलों का प्रयोग करें।
  • रोपाई के बाद तेज़ी से बढ़ने वाले अंकुरों की प्रजाति को चुनें।
  • खेतों में अच्छी जलनिकासी सुनिश्चित करें।
  • सबसे प्रतिकूल मौसम की परिस्थितियों से बचने के अनुसार रोपाई की योजना बनाएं।
  • प्रभावित फसलों के कटने के बाद बचे कचरे को जला कर नष्ट कर दें।

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