Botryosphaeria dothidea
फफूंद
इस रोग का नाम पेड़ों की छाल से भारी मात्रा में गोंद का स्राव होने पर रखा गया है। प्रारंभिक लक्षणों में 1-6 मिमी. व्यास वाले उभरे हुए फफोले होते हैं जो कि मुख्य तने, शाखाओं और टहनियों की छाल पर नज़र आते हैं। आम तौर पर इन उभारों के केंद्र में एक निशान (वातरंध्र) होता है जो कि रोगाणु का मूल प्रवेश बिंदु माना जाता है। संक्रमण मौसम की शुरुआत में हो सकता है लेकिन लक्षण केवल अगले वर्ष के दौरान ही नज़र आते हैं। जैसे-जैसे पेड़ बढ़ता है, वातरंध्र बहुत कम दिखते हैं या गायब हो जाते हैं, हालांकि इनके चारों ओर का क्षेत्र परिगलित हो जाता है और उसका रंग उड़ जाता है। ये घाव भारी मात्रा में लालिमा लिए हुए भूरा गोंद स्रावित करते हैं, विशेष तौर पर भारी बारिश के बाद। गोंद बाद में सूखकर गहरा भूरा या काला पड़ा जाता है। जब 2 सेंमी. से बड़े घाव आपस में मिलते हैं तो कैंकर बनने लगते हैं। गंभीर संक्रमण होने पर परिगलन या ऊतकक्षय आंतरिक हिस्सों तक भी फैल जाता है और पूरी शाखा को घेर लेता और अंत में इसे मार देता है। फूल, पत्तियां और फल आम तौर पर अप्रभावित रहते हैं।
इस रोग का कोई जैविक उपचार उपलब्ध नहीं है। मध्यम ब्लीच (10%) या अल्कोहल से रगड़कर छंटाई उपकरणों को रोगाणुविहीन किया जा सकता है और इस तरह बाग़ में फफूंद का फैलाव रोका जा सकता है।
रोकथाम उपायों के साथ-साथ उपलब्ध जैविक उपचारों को लेकर हमेशा एक समेकित कार्यविधि पर विचार करें। बाहरी कैंकर लक्षण कम करने के लिए फफूंदनाशकों का उपयोग किया जा सकता है, हालांकि ये रोगाणु पर दीर्घकालिक नियंत्रण प्रदान नहीं करते हैं। क्रेसॉक्सिम-मिथाइल और ट्राइफ़्लॉक्सीस्ट्रोबिन पर आधारित फफूंदनाशकों का अनुशंसित दर से पत्तियों पर छिड़काव कैंकर निर्माण और उसके आकार पर लगाम लगाता है। एयर ब्लास्ट स्प्रेयर से क्रेसॉक्सिम-मिथाइल से उपचार करना भी प्रभावी है।
लक्षणों का कारण मुख्य रूप से फफूंद बॉट्रियोस्फ़ेरिया डोथिडिया है, हालांकि इसमें इसके परिवार के अन्य फफूंद भी शामिल हो सकते हैं। संक्रमण अवधियों के दौरान रोगाणु रोगित छाल और मृत शाखाओं में जीवित रहते हैं। वसंत में ये बीजाणु बनाना शुरू कर देते हैं और एक वर्ष तक ऐसा करते रहते हैं। फिर, ये बीजाणु बारिश की बूंदें पड़ने से चारों ओर फैल जाते हैं या फिर सिंचाई के पानी से पूरे बाग़ में पहुंच जाते हैं। रोगाणु आम तौर पर नए पेड़ों को मौजूदा घावों या छाल पर वातरंध्र कहलाने वाले प्राकृतिक क्षति चिन्हों के माध्यम से संक्रमित करते हैं। गीलेपन और नमी की लंबी अवधि संक्रमण प्रक्रिया को बढ़ावा देती है। पेड़ों पर बाहरी या रासायनिक क्षति या अन्य गैर-रोगाणु कारणों (जैसे की पानी की कमी) के कारण भी गमोसिस हो सकता है। ख़राब देखरेख वाले बाग़ों में इस रोग से क्षति की आशंका ज़्यादा होती है। अब तक उपलब्ध किसी भी किस्म में फफूंद से हुए गमोसिस के विरुद्ध उपयोगी प्रतिरोध नहीं देखा गया है।