Polystigma ochraceum
फफूंद
लक्षणों की शुरुआत पत्तियों की दोनों सतह पर हल्के हर धब्बों के रूप में होती है, जो बाद में पीले-नारंगी धब्बे बन जाते हैं। वसंत के दौरान ये धब्बे बढ़ते जाते हैं और गर्मियों के अंत तक धीरे-धीरे आपस में मिलकर पत्ती की सतह के बड़े हिस्से पर फैल जाते हैं। फैलते समय इनका केंद्रीय हिस्सा गहरे रंग और अनियमित आकार का हो जाता है, और भूरे रंग से घिर जाता है। रोग के उन्नत चरणों के दौरान, नोक या किनारों से शुरू करते हुए पत्तियां मुड़ने और गलने लगती हैं। लाल पत्ती धब्बा रोग (रेड लीफ़ ब्लॉच) के कारण पत्तियों समय से पहले झड़ सकती हैं, जिससे प्रकाश संश्लेषक क्षमता कम हो जाती है, और फिर पैदावार पर असर पड़ सकता है।
इस रोगजनक के लिए कोई जैविक नियंत्रण विधि उपलब्ध नहीं है। कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (2 ग्राम/लीटर), कॉपर हाइड्रॉक्साइड (2 ग्राम/ली) और बोर्डो मिश्रण (10 ग्राम/ली) जैसे कार्बनिक कवकनाशी पत्ती के संक्रमण को काफ़ी कम करते हैं। एक बार पंखुड़ियाँ गिरते समय और दूसरी बार 14 दिनों के अंतराल पर कवकनाशी लगाने से रोग को कम करने में मदद मिलती है।
अगर उपलब्ध हों तो हमेशा जैविक उपचार के साथ निवारक उपायों के मिलेजुले दृष्टिकोण पर विचार करें। पत्तियों के संक्रमण को बड़ी मात्रा में कम करने वाले कवकनाशी हैं मैन्कोज़ेब और संबंधित डाइथियोकार्बामेट (2 ग्राम/ली)। एक बार पंखुड़ियाँ गिरते समय और दूसरी बार 14 दिनों के अंतराल पर कवकनाशी लगाने से रोग को कम करने में मदद मिलती है।
लक्षणों का कारण कवक पॉलीस्टिग्मा ऑक्रेशियम है, जो जीवित पत्तियों पर चमकीले रंग की कवक संरचनाएं बनाता है तथा पेड़ के मृत और सड़े हुए अवशेषों में सर्दियाँ बिता सकता है। गिरी हुई पत्तियों पर, कवक प्रजनन संरचनाएं बनाता है, जो आने वाले वसंत के मौसम में अनुकूल परिस्थितियाँ होने पर बीजाणु पैदा करती हैं। फूल आने के समय बीजाणु पैदा शुरू होते हैं और पंखुड़ियों के गिरने के समय इनकी आबादी शिखर पर पहुँच जाती है। यह कवक प्रकाश संश्लेषक दर और पेड़ों की उत्पादकता को प्रभावित करता है।