पपीता

फाइटोफ्थोरा शीर्ष तथा जड़ों की सड़न

Phytophthora spp.

फफूंद

संक्षेप में

  • छोटी तथा हल्की हरितहीन पत्तियाँ, फलों के कमज़ोर गुच्छे तथा जड़ों और तनों के आधार के आंतरिक ऊतकों में सड़न।
  • शीर्ष से लेकर जड़ों तक लकड़ी पर लालिमा लिए हुए कत्थई रंग के परिगलित घाव दिखाई देते हैं।
  • यह घाव अंततः तने को चारों ओर से जकड़ लेते हैं तथा अंत में पौधे को मार देते हैं।

में भी पाया जा सकता है

8 फसलें
करेला
अंगूर
मैनीक
खरबूज
और अधिक

पपीता

लक्षण

लक्षण विशिष्टतः जड़ों के रोगों जैसे ही हैं। छोटी तथा हल्की हरितहीन पत्तियाँ, फलों के कमज़ोर गुच्छे तथा आंतरिक ऊतकों में सड़न शीर्ष तथा जड़ों की सड़न के मुख्य लक्षण हैं। संक्रमित लताएं अविकसित और पत्तियाँ कम रह सकती हैं तथा समय से पूर्व गिर सकती हैं। छाल सड़न के निशान दिखा सकती है और कुछ मामलों में, गोंद जैसी बूंदें भी दिखाई दे सकती हैं। तने के आधार के अधिकाँश हिस्से में लालिमा लिए हुए कत्थई रंग का परिगलित घाव दिखता है जो शीर्ष से ले कर जड़ों तक फैला होता है। नासूर अंततः तने को चारों ओर से जकड़ लेते हैं, जो पौधे के ऊपरी हिस्सों की पानी और पोषक तत्वों की आपूर्ति को रोक देता है, और बाद में शीर्ष से शुरू करते हुए टहनियां मरने लगती हैं। लताएं या वृक्ष धीरे-धीरे मरने लगते हैं और इन्हें आसानी से मिट्टी से उखाड़ा जा सकता है।

सिफारिशें

जैविक नियंत्रण

फफूंद प्रतिरोधक जैविक उपचार किए जा सकते हैं, उदाहरण के रूप में, घाव या कटाई के कारण हुई चोटों पर बोर्डो मिश्रण लगा कर। इस मिश्रण के साथ रोकथाम उपाय हमले को कम कर सकता है। जब वृक्ष व्यापक रूप से प्रभावित हों, रोग का इलाज नहीं किया जा सकता और केवल रोकथाम उपाय ही इसकी गंभीरता को कम कर सकते हैं।

रासायनिक नियंत्रण

हमेशा समवेत उपायों का प्रयोग करना चाहिए, जिसमें रोकथाम के उपायों के साथ जैविक उपचार, यदि उपलब्ध हो, का उपयोग किया जाए। सिंचाई के माध्यम से कवकनाशकों को लगाना पेड़ों और लताओं का उपचार करने का एक प्रभावशाली तरीका है। पहले लक्षण दिखाई देने पर, तनों के आधार की फोसेटाइल अल्युमीनियम, मेटालेक्साइल या मिथाइल थियोफेनेट-मिथाइल युक्त कवकनाशकों से अच्छे से सिंचाई करें। रोग को फैलने से रोकने के लिए, कृषि उपकरणों को उपयोग के बाद ब्लीच के साथ कीटाणुरहित करें।

यह किससे हुआ

लक्षण जीनस फाइटोफ्थोरा की विभिन्न प्रजातियों के कारण उत्पन्न होते हैं। एक बार किसी खेत में पहुँचने पर, वे मिट्टी में कई वर्षों तक जीवित रह सकते हैं। खेतों से इसे हटा पाना संभव नहीं है। फफूंद अपने विकास के लिए मिट्टी की अधिक नमी और आर्द्रता और गर्म मौसम पर निर्भर करता है। रोगग्रस्त लताएं या वृक्ष प्रायः उन खेतों में अकेले या छोटे समूहों में पाए जाते हैं जहाँ खराब जलनिकासी के क्षेत्र हों, जल जमाव अक्सर होता हो, अथवा अधिक सिंचाई की गयी हो। ड्रिप सिंचाई की सुविधा वाले बाग़ या बाग़ीचों में लक्षण कभी-कभी उन तनों पर दिखाई दे सकते हैं, जो वाल्व के बिल्कुल नीचे हों या जिनकी शाखाओं से पानी सीधे बहता हो। रोग का प्रसार संक्रमित पदार्थों के परिवहन से भी होता है, उदाहरण के लिए, कलम लगाने के दौरान।


निवारक उपाय

  • यदि उपलब्ध हो, तो फाइटोफ्थोरा प्रतिरोधी प्रजातियों का प्रयोग करें।
  • विभन्न खेतों और क्षेत्रों के बीच पौधे की संक्रमित सामग्री का परिवहन न करें।
  • ऐसे क्षेत्रों में पौधा रोपण न करें जहां जल जमाव की संभावना होती हो।
  • जल निकासी की किसी भी समस्या का निराकरण करें जिसके कारण तने के आसपास जल जमाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती हो।
  • बार-बार तथा लम्बे समय तक मिट्टी को पानी से भरे रखने से बचें।
  • जड़ों के क्षेत्र पर जैविक पलवार बनाये रखें।
  • बाग़ को पौधों के अवशेषों से साफ़ रखें।
  • बाग़ से संक्रमित पौधे के हिस्सों या मृत वृक्षों या लताओं को हटा दें और जला दें।
  • साथ में ऐसे पौधे न लगाएं जो रोग को फैला सकते हों।
  • संक्रमित क्षेत्र के बाद साफ़ क्षेत्रों में काम करने से पूर्व कृषि उपकरणों को अच्छी तरह साफ़ ज़रूर करें।
  • ड्रिप सिंचाई को इस प्रकार व्यवस्थित करें कि सीधा तने से पानी नीचे न बहे।
  • कलम लगाते समय, ध्यान रखिये कि जोड़ मिट्टी से पर्याप्त ऊंचाई पर हों।

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