Mycosphaerella angulata
फफूंद
रोगजनक सिर्फ़ पत्तियों पर आक्रमण करता है। रोग की आरंभिक अवस्था में, संक्रमित लताओं की पत्तियों पर हरितहीन धब्बे विकसित होते हैं, जो निचली ओर पर अधिक दिखाई देते हैं। जैसे-जैसे ये मौसम के साथ आकार में बड़े होते हैं, पीले धब्बों के मध्य असमान कत्थई दाग़ बढ़ने लगते हैं जो उन्हें कोणीय रूप देते हैं तथा दूर से ही देखे जा सकते हैं। लक्ष्ण शेष पत्तियों पर भी फैल सकते हैं जिसके कारण अंततः यह पीली पड़ जाती हैं तथा मर जाती हैं। जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, मौसम के अंत तक व्यापक रूप से पत्तियाँ झड़ सकती हैं। पत्तियों की कमी हो जाने के कारण पौधे की जीवन-शक्ति तथा उपज कम होने के साथ-साथ अंगूरों की गुणवत्ता भी कम हो जाती है।
माफ़ कीजियेगा, हमें माईकोस्फ़ेरेला एन्ग्युलेटा के विरुद्ध कोई वैकल्पिक उपचार ज्ञात नहीं हैं। यदि आप ऐसा कुछ जानते हों जिससे इस रोग से लड़ने में सहायता मिलती हो, तो कृपया हमसे संपर्क करें। हमें आपके सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी।
हमेशा समवेत उपायों का प्रयोग करना चाहिए, जिसमें रोकथाम के उपायों के साथ जैविक उपचार, यदि उपलब्ध हो, का उपयोग किया जाए। पत्तियों के कोणीय धब्बों को परंपरागत कवकरोधकों के समयबद्ध तरीके से प्रयोग करके नियंत्रित किया जा सकता है। मौसम के आरम्भ में कवकरोधकों का लगातार प्रयोग संक्रमण से बचने का सबसे प्रभावी उपाय है।
लक्षण पौधों के कवक मायकोस्फ़ेरेला एन्ग्युलेटा के कारण होते हैं। यह मस्काडीन अंगूरों (विटिस रोटंडीफ़ोलिया) का एक महत्वपूर्ण रोग है, किन्तु यह अन्य अंगूरों को भी प्रभावित कर सकता है। बीजाणु हवा तथा पानी के छींटों के द्वारा अन्य पत्तियों तथा पौधों तक फैलते हैं। ये पौधों के ऊतकों में पत्तियों में उपस्थित प्राकृतिक छिद्रों या घावों के द्वारा प्रवेश करते हैं। संक्रमित पत्तियों में कमज़ोर प्रकाश-संश्लेषण होता है, जिसके कारण पत्तियों की हानि, लताओं की कम जीवन-शक्ति तथा अंगूरों में धूप के संपर्क के कारण झुलसना दिखाई देता है। यदि यह फलों के बनने के पूर्व होता है, तो संक्रमण बेरों का विकास उनके परिपक्व होने से पूर्व धीमा कर सकता है अथवा रोक सकता है। रोगजनक ऊष्ण, नम परिस्थितियों में विशेषकर विकास के मौसम की आरम्भ की अवस्था में फलते हैं।