सिट्रस (नींबू वंश)

साइट्रस स्कैब

Elsinoe fawcettii

फफूंद

संक्षेप में

  • पत्तियों के दोंनो तरफ़ मलाईदार से पीले रंग लिए हुए या उजले रंग वाले छाले।
  • ये छाले बाद में बढ़ कर असमान, कत्थई से मखमली सिरे वाली शंकु आकार की विकृति में बदल जाते हैं।
  • प्रभावित पत्तियाँ छितरे किनारों सहित झुर्रीदार या सिकुड़ी हुई हो जाती हैं बहुत घने मस्सेनुमा पपड़ियां जो पीलापन लिए हुए कत्थई या भूरे रंग की होती हैं।

में भी पाया जा सकता है


सिट्रस (नींबू वंश)

लक्षण

लक्षण वृक्षों की प्रजातियों तथा वातावरण की परिस्थितियों के अनुसार थोड़े बदलते रहते हैं। आम तौर पर, नई पत्तियों पर सबसे पहले बहुत छोटे पानी से भरे धब्बे दिखाई देते हैं। बाद में यही बढ़ कर पत्तियों के दोनों ओर मलाईदार से पीलेपन या चटख रंग के छाले बन जाते हैं। जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, ये छाले बढ़ कर कत्थई रंग की मखमली सिरे वाली असमान शंकु के आकार की विकृति बन जाते हैं, जो पत्तियों का बड़ा हिस्सा घेर लेते हैं। पुराने घावों में पपड़ीनुमा सिरा होता है तथा दरारों और चटकाव के साथ ये खुरदुरे दिखाई देते हैं। प्रभावित पत्तियाँ छितरे किनारों सहित झुर्रीदार या सिकुड़ी हुई हो जाती हैं। नई शाखाओं, मुलायम टहनियों या तनों पर भी ऐसे ही लक्षण देखे जा सकते हैं। अवरुद्ध तथा झाड़ीनुमा विकास इसके दो सामान्य लक्षण हैं। गंभीर संक्रमण होने पर, प्रायः पत्तियों का गिरना आरम्भ हो जाता है। फलों पर, ये छाले थोड़े उठे हुए तथा गुलाबी से हल्के कत्थई रंग के होते हैं। जैसे-जैसे ये विकसित होते हैं, ये घने रूप से बंद मस्सेनुमा पपड़ियां बन जाते हैं जो रंग में पीलापन लिए हुए कत्थई या भूरे होते हैं।

सिफारिशें

जैविक नियंत्रण

इन कवकों के विरुद्ध कोई जैविक उपचार उपलब्ध नहीं है। नए संक्रमणों तथा कवकीय वृद्धि को रोकने के लिए कॉपर पर आधारित प्रमाणित जैविक कवकरोधकों का प्रयोग किया जा सकता है। इस बात की सावधानी रखनी होगी कि यदि सही तरीके से प्रयोग न किया जाए तो कॉपर विषैला भी हो सकता है।

रासायनिक नियंत्रण

हमेशा समवेत उपायों का प्रयोग करना चाहिए, जिसमें रोकथाम के उपायों के साथ जैविक उपचार, यदि उपलब्ध हो, का उपयोग किया जाए। थिरम, डाईफ़ेनोकोनाज़ोल तथा क्लोरोथेलोनिल पर आधारित सुरक्षा कारक कवकरोधकों का प्रयोग बड़े पैमाने पर नुकसान को रोकने के लिए निरोधात्मक रूप में किया जा सकता है। प्रणालीगत कवकरोधक भी अतिरिक्त विकल्प हैं। जीवाणुओं की कवकरोधक प्रतिरोधी प्रजातियाँ भी पाई गई हैं।

यह किससे हुआ

लक्षण कवक एल्सिनो फ़ॉसेट्टी तथा ई. ऑसट्रेलिस के कारण होते हैं, जो साइट्रस वृक्षों की अन्य प्रजातियों में समान लक्षण पैदा करते हैं। नींबू, चकोतरा, नारंगी दोनों के प्रति संवेदनशील होते हैं। एल्सिनो फ़ॉसेट्टी मुख्यतः खट्टे संतरों को तथा मीठे संतरों की कुछ प्रजातियों को ही संक्रमित करते हैं। इसके विपरीत ई. ऑसट्रेलिस के कारण मीठे संतरों तथा नींबू में पपड़ी होती है, लेकिन खट्टे संतरे इसके धारक नहीं होते। पत्तियों पर गुलाबी से ले कर कत्थई सिरों वाले शंकुनुमा तथा फलों पर मस्सेनुमा बनावट बीजाणु होते हैं जो बारिश की छींटों, ओस, हवा या ऊपर से की गयी सिंचाई से फैलते हैं। साइट्रस पपड़ी के दो जीवाणुओं में से, ई. फ़ॉसेट्टी अधिक व्यापक है, किन्तु ई. ऑसट्रेलिस आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह साइट्रस की उन प्रजातियों पर आक्रमण करता है जिन्हें बड़े पैमाने पर उगाया जाता है।


निवारक उपाय

  • कुछ देशों में संभावित पृथक्करण नियमों के बारे में जागरूक रहें।
  • किसी प्रमाणित स्त्रोत के रोपाई के पदार्थों का प्रयोग करें।
  • यदि उपलब्ध हों, तो प्रतिरोधक प्रजातियों को चुनें।
  • अवोकाडो या पपीते जैसी गैर-साइट्रस पेड़ों के साथ फ़सल लगाएं।
  • खेतों तथा उसके आसपास से खरपतवार को साफ़ करें।| रोगग्रस्त होने की आशंका वाले वृक्षों को अन्य खेतों तथा बागीचों तक न ले जाएँ।
  • ऊपरी सिंचाई से पानी न दें।
  • बागीचे को पुरानी शाखाओं, टहनियों और फलों से साफ़ रखें।
  • छतरी में हवा के बहाव को बढ़ाने के लिए छंटाई करें।

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