अरहर और तुअर दाल

फ़ाइटोफ़्थोरा अंगमारी

Phytophthora drechsleri f. sp. cajani

फफूंद

संक्षेप में

  • पत्तियों पर पानी से भीगे हुए दाग़।
  • तनों और डंठलों पर कत्थई से काले धंसे हुए दाग़।
  • संक्रमित पौधों की अचानक मृत्यु।

में भी पाया जा सकता है


अरहर और तुअर दाल

लक्षण

छोटे अंकुरों में हुए संक्रमण से वे गिरकर अचानक मर जाते हैं। यदि पौधा मरता नहीं है, तो तनों पर बड़े फोड़े बन जाते हैं।संक्रमित पौधों में पत्तियों पर पानी से भीगे हुए दाग़ दिखाई देते हैं। तनों तथा डंठलों पर कत्थई से काले तथा अन्दर की ओर धंसे हुए दाग़ नज़र आते हैं। तनों के दाग़ों के ऊपर से पौधा मुरझाने लगता है और अंत में मर सकता है।

सिफारिशें

जैविक नियंत्रण

तनों की सड़न के विरुद्ध सुडोमोनस फ्लुरोसेन्स तथा बैसिलस सबतिलिस के साथ साथ ट्राईकोडरमा विरिदे और हेमाटम प्रभावी होते हैं।

रासायनिक नियंत्रण

हमेशा एक समेकित दृष्फ़ाटिकोण अपनाएं जिसमें निरोधात्इमक उपायों के साथ साथ यदि उपलब्टोध हों तो जैविक उपचारों का भी समावेश हो। फ़्थोरा अंगमारी रोकने के लिए आप अपने बीजों का का उपचार 4 ग्राम मेटालेक्सिल प्रति किलोग्राम बीज की दर से कर सकते हैं।

यह किससे हुआ

फ़ाइटोफ़्थोरा अंगमारी मिट्टी में पैदा होने वाला कवक है। यह पौधों के अवशेषों में सर्दियों में जीवित रहता है। बूंदाबांदी वाली नम परिस्थितियाँ तथा 25 डिग्री सेल्सिसस के आसपास का तापमान संक्रमण के लिए अनुकूल होता है। संक्रमण के लिए 8 घंटे तक पत्तियों का गीला रहना आवश्यक है। अरहर में कुछ समय बाद इस रोग के प्रति प्रतिरोध विकसित हो जाता है।


निवारक उपाय

  • यदि उपलब्ध हों तो प्रतिरोधी प्रजातियाँ लगायें।
  • स्थान पर खराब जलनिकासी वाली उभरी हुई क्यारियों तथा गीकी मिटटी वाली जगहों में जलजमाव से बचना चाहिए।
  • अंगमारी के पूर्व इतिहास वाले खेतों में अरहर की बुआई न करें।रोपाई के समय बीजों या अंकुरों के मध्य चौड़ी जगह रखें।
  • फसल चक्रीकरण अपनाएं।
  • पलवार लगाने या उदाहरण के लिए मूंग या उरद कीदाल के साथ अंतर्फसल से अंगमारी के संक्रमण को कम किया जा सकता है।
  • पोटैशियम उर्वरकों का प्रयोग कर संक्रमण के खतरे को कम किया जा सकता है।

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