Phytophthora drechsleri f. sp. cajani
फफूंद
छोटे अंकुरों में हुए संक्रमण से वे गिरकर अचानक मर जाते हैं। यदि पौधा मरता नहीं है, तो तनों पर बड़े फोड़े बन जाते हैं।संक्रमित पौधों में पत्तियों पर पानी से भीगे हुए दाग़ दिखाई देते हैं। तनों तथा डंठलों पर कत्थई से काले तथा अन्दर की ओर धंसे हुए दाग़ नज़र आते हैं। तनों के दाग़ों के ऊपर से पौधा मुरझाने लगता है और अंत में मर सकता है।
तनों की सड़न के विरुद्ध सुडोमोनस फ्लुरोसेन्स तथा बैसिलस सबतिलिस के साथ साथ ट्राईकोडरमा विरिदे और हेमाटम प्रभावी होते हैं।
हमेशा एक समेकित दृष्फ़ाटिकोण अपनाएं जिसमें निरोधात्इमक उपायों के साथ साथ यदि उपलब्टोध हों तो जैविक उपचारों का भी समावेश हो। फ़्थोरा अंगमारी रोकने के लिए आप अपने बीजों का का उपचार 4 ग्राम मेटालेक्सिल प्रति किलोग्राम बीज की दर से कर सकते हैं।
फ़ाइटोफ़्थोरा अंगमारी मिट्टी में पैदा होने वाला कवक है। यह पौधों के अवशेषों में सर्दियों में जीवित रहता है। बूंदाबांदी वाली नम परिस्थितियाँ तथा 25 डिग्री सेल्सिसस के आसपास का तापमान संक्रमण के लिए अनुकूल होता है। संक्रमण के लिए 8 घंटे तक पत्तियों का गीला रहना आवश्यक है। अरहर में कुछ समय बाद इस रोग के प्रति प्रतिरोध विकसित हो जाता है।