कपास

सोरशिन

Rhizoctonia solani

फफूंद

संक्षेप में

  • अंकुरों के तने पर असमान आकार के काले से लालिमा लिए हुए कत्थई रंग के घाव।
  • ये तने को घेर लेते हैं तथा पौधा मर भी सकता है।

में भी पाया जा सकता है

1 फसलें

कपास

लक्षण

धंसे हुए, अंडाकार से ले कर असमान आकार तथा लालिमा लिए हुए कत्थई से ले कर काले रंग के घाव अंकुरों के तनों पर दिखाई देते हैं। पौधे प्रायः मर जाते हैं जब ये घाव कपास के अंकुरों के तनों को चारों ओर से घेर लेते हैं। घावों की सतह पर सतही फफुंद उपस्थित हो सकते हैं जिस से प्रायः मिट्टी के कण चिपक जाते हैं। संक्रमण तथा घावों का बढ़ना अक्सर मिट्टी की सतह के नीचे होता है, किन्तु जैसे-जैसे तना बढ़ता है और लंबा होता है, घाव मिट्टी की सतह पर भी दिखने लग सकते हैं।

सिफारिशें

जैविक नियंत्रण

यदि अगले 4-5 दिनों तक ठंडे या वर्षा के मौसम की संभावना हो, तो रोपाई न करें। 5 सेमी से अधिक गहराई पर रोपाई न करें।

रासायनिक नियंत्रण

हमेशा समवेत उपायों का प्रयोग करना चाहिए जिसमें रोकथाम के उपायों के साथ जैविक उपचार, यदि उपलब्ध हो, का उपयोग किया जाए। एट्रिडियाज़ोल, कॉपर ऑक्सीक्लोराइड, टोलक्लोफ़ोस-मिथाइल, थियाबेंडाज़ोल, थिरम और कैप्टेन जैसे कवकनाशकों के साथ उपचार से अंकुरों के निकलने की प्रतिशत बढ़ जाती है और कपास के अंकुरों में रोग की संभावना कम हो जाती है।

यह किससे हुआ

लक्षण मिट्टी के फफुंद, रिज़ोक्टोनिया सोलानी, के कारण होते हैं जो अनेक धारक पौधों को संक्रमित कर सकता है। अंकुरों को औज़ारों से हुई यांत्रिक चोटें, उदाहरण के रूप में, रोपाई के समय, संक्रमण के लिए सहायक होती हैं। जब घाव मिट्टी की सतह पर होते हैं, तो अक्सर यह गलतफ़हमी हो सकती है कि वे हवा के कारण तने के मिट्टी की सख़्त ऊपरी सतह से रगड़ने के कारण ऊतकों को हुई खरोंचें हैं। जैसे-जैसे अंकुर बढ़ते हैं, वे प्राकृतिक रूप से संक्रमण के प्रतिरोधी हो जाते हैं क्योंकि उनकी जड़ प्रणाली अधिक व्यापक तथा जड़ों की कोशिकाएं लिग्निन के जमाव से सख्त हो जाती हैं।


निवारक उपाय

  • रोग के लक्षणों के लिए बागीचे पर नियमित रूप से निगरानी रखें।
  • प्रतिरोधक या सहनशील प्रजातियों को चुनें।
  • रोगमुक्त अंकुरण के पदार्थों का प्रयोग करें।
  • नम मिट्टी में रोपाई न करें।
  • ठन्डे मौसम में सिंचाई न करें।
  • ज्वार तथा छोटे अनाजों के साथ फसल चक्रीकरण की सलाह दी जाती है।
  • मिट्टी का तापमान 20 डिग्री से. से अधिक होने पर ही रोपाई करें।
  • ऊंची सतह पर रोपाई करने से मिट्टी के तापमान को बढ़ाने तथा जलनिकासी को सुधारने में सहायता मिलती है।

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