Phakopsora pachyrhizi
फफूंद
संक्रमण पौधों के निचले हिस्से से आरम्भ होता है और फिर ऊपर की और बढ़ता है। पहले लक्षण फूल खिलने की अवस्था में पत्तियों में नीचे की ओर तथा शिराओं के साथ छोटे भूरे धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं। बाद में, ये धब्बे आकार और संख्या में बढ़ते हैं, आपस में जुड़ते हैं और लाल-कत्थई या लाल-काले हो जाते हैं, जो प्रायः पीले प्रभामंडल से घिरे होते हैं। अब ये पत्तियों के दोनों ओर और डंठलों पर भी उपस्थित होते हैं, और कभी-कभी तनों में भी दिखते हैं। जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, वे उभरे हुए, हल्के कत्थई कीटाणुयुक्त छल्ले से ढक जाते हैं जो कि नग्न आँखों से भी दिखाई देते हैं।
संक्रमण की गंभीरता को कम करने के लिए उन उत्पादों का प्रयोग करें, जिनमें कोरिम्बिया सिट्रिओडोरिया 1%, सिम्बोपोगोन नारडास 0.5% तथा थायमस वल्गेरिस 0.3% उपस्थित हों।
यदि उपलब्ध हो, तो जैविक उपचार के साथ निवारक उपायों के एकीकृत दृष्टिकोण पर हमेशा विचार करें।। सही फफूंदरोधक को चुनना और इसका सही समय पर प्रयोग करना महत्वपूर्ण है। हेक्साकोनोज़ोल तथा प्रोपिकोनाज़ोल पर आधारित फफूंदरोधक का प्रयोग करें। पौधे के विकास के पूरे समय के दौरान समय-समय पर ज़िंक आयरन-मनेब यौगिक का प्रयोग किया जाना चाहिए।
सोयाबीन रस्ट एक आक्रामक रोग है जो फ़कोप्सोरा पेकिर्हिज़ी नाम के फफूंद से होता है। जब समीप में अन्य कोई सोयाबीन का पौधा न हो, तो इसे हल्की सर्दी और अन्य धारकों की आवश्यकता होती है क्योंकि यह हरे जीवित ऊतक के बिना जीवित और विकसित नहीं हो सकता। रस्ट के बीजाणु पौधों की कोशिकाओं को पत्तियों के ऊतकों को छिद्रों या घावों के बजाय सीधे ही छेद सकते हैं। 6 से 12 घन्टों तक पत्तियों का लगातार नम रहना, माध्यम तापमान (15 से 25 डिग्री से) तथा उच्च नमी (>75 %) इस रोग के विकास में सहायक हैं।