गेहूं

पीले भूरे धब्बे (टैन स्पॉट)

Pyrenophora tritici-repentis

फफूंद

संक्षेप में

  • पत्तियों की ऊपरी तथा निचली सतह पर स्पष्ट दिखने वाले पीले किनारे वाले पीले-भूरे से कत्थई धब्बे।
  • परिगलन पत्ती के शीर्ष से ले कर पूरी पत्ती तक फैला हुआ होता है।
  • गुलाबी या लाल से दाने (लाल धब्बे) या काले रंग का बदरंग दाग होना भी संभव है।

में भी पाया जा सकता है

1 फसलें

गेहूं

लक्षण

लक्षण पत्तियों पर परिगलन या हरित हीनता या दोनों के रूप में नज़र आ सकते हैं। पहले पत्तियों की ऊपरी तथा निचली सतह पर पीले-भूरे से परिगलित धब्बे नज़र आते हैं। बाद में वे बढ़ कर लेंस की आकृति के बदलते आकार वाले हल्के हरे या पीले हरितहीन किनारों वाले धूप में जले हुए घाव में बादल जाते हैं। घाव का केंद्र सूख जाता है और स्लेटी रंग का हो जाता है। नम पत्तियों वाले उच्च आर्द्रता के वातावरण में घाव का केंद्र गहरे रंग का होता है। आरंभिक धब्बे बढ़ते हुए आपस में मिल कर बड़े धब्बे बनाते हैं, जिसके कारण पत्तियां मर जाती हैं और झड़ जाती हैं। इस कवक के कारण दाने में गुलाबी या लाल से रंग के दाग़ (लाल धब्बे) या, अन्य कवकों के साथ, काला बदरंग दाग़ होता है। हालांकि, भूसे पर प्रभाव नहीं पड़ता है।

सिफारिशें

जैविक नियंत्रण

मिट्टी में प्रतिरोधी सूक्ष्मजीवों की बसावट को बढ़ाने के लिए उर्वरकों का संतुलित प्रयोग करें। सूक्ष्मजीव जैसे कि एल्टरनारिया एल्टरनाटा, फ़्यूज़ेरियम पैलीडोरोसियम, एसिनेटोबेक्टर केल्कोसेटिकास, सेराशिया लिक्वेफेसिंस और सफ़ेद यीस्ट इन पीले-भूरे धब्बों के कवक का प्रतिरोध करते हैं और इसे घटित होने से संतोषप्रद रूप से कम करते हैं।

रासायनिक नियंत्रण

हमेशा समवेत उपायों का प्रयोग करना चाहिए जिसमें रोकथाम के उपायों के साथ जैविक उपचार, यदि उपलब्ध हो, का उपयोग किया जाए। पायराक्लोस्ट्रोबिन, पिकोक्सीस्ट्रोबिन, प्रोपिकोनाज़ोल तथा प्रोथियोकोनाज़ोल पर आधारित पत्तियों पर छिड़काव करने वाले कवकरोधकों ने पीले-भूरे धब्बों के विरुद्ध उच्च कार्यक्षमता दिखाई है।

यह किससे हुआ

इसके लक्षण कवक पायरेनोफ़ोरा ट्रिटिकी-रेपेंटिस के कारण होते हैं जो सर्दियों में गेंहूं के भूसे पर या बीज में जीवित रहता है। बीजाणु वसंत में पैदा होते हैं और परिपक्वता के बाद छोड़े जाते हैं, और अपने बड़े आकार के कारण हवा और पानी के छींटों के साथ कम दूरी तक बिखर जाते हैं। वे निचली पत्तियों को संक्रमित करते हैं, जहाँ वे विकसित होते हैं और अन्य जीवाणु को उत्पन्न करते हैं जो रोग को ऊपरी पत्तियों तथा अन्य पौधों तक फैलाते हैं। पौधों में कवक के चुने हुए विषाक्त पदार्थों के कारण परिगलन और हरित हीनता के लक्षण पैदा होते हैं, एक प्रक्रिया जो प्रकाश पर निर्भर होती है। 95% से अधिक आर्द्रता बीजाणुओं के उत्पन्न होने में सहायक होती है। पत्तियों की नमी, अधिक सापेक्ष आर्द्रता और दो दिनों तक 10 डिग्री से. से अधिक तापमान द्वितीयक संक्रमण में सहायक होता है। टैन स्पॉट के फैलाव के लिए आदर्श तापमान 20 से 25 डिग्री से. है।


निवारक उपाय

  • प्रमाणित बीज खरीदें, क्योंकि कवक प्रायः संक्रमित बीज पदार्थों से ही संप्रेषित होता है।
  • यदि उपलब्ध हों, तो प्रतिरोधी प्रजातियाँ उपजाएं।
  • कवक के विकास को रोकने के लिए अपने पौधों के मध्य दूरी अधिक रखें।
  • फसल कटने के बाद अच्छी तरह जुताई टैन स्पॉट के खतरे को काफ़ी हद तक कम कर देती है क्योंकि यह कवक मिट्टी के सूक्ष्मजीवों से प्रतिद्वंदिता के प्रति संवेदनशील होता है।
  • गैर-धारक फसलों जैसे कि सरसों, अलसी, क्रेम्बे, या सोयाबीन के साथ प्रत्येक दूसरे या तीसरे वर्ष चक्रीकरण की सलाह दी जाती है।
  • पौधों की अंकुरण से ले कर फूल खिलने की अवधि के मध्य अच्छी तरह निगरानी करें।
  • फसल काटने के बाद जुताई करें और पौधों के सभी अवशेषों को नष्ट कर दें।
  • पौधों की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए उर्वरकों का संतुलित प्रयोग करें।

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