Pyrenophora teres
फफूंद
नेट ब्लॉच के दो प्रकार हैं: धब्बेनुमा प्रकार और जालीनुमा प्रकार। इसके लक्षण आम तौर पर पत्तियों पर पाए जाते हैं, लेकिन कभी-कभी पत्तियों के आवरण और भूसी पर भी नज़र आ सकते हैं। जालीनुमा प्रकार में आरम्भ में छोटे-छोटे भूरे घाव दिखाई देते हैं, जो लम्बाई में बढ़ते हैं और पत्तियों के किनारों के साथ और चारों ओर पतली गहरी भूरे रंग की धारियां उत्पन्न करते हैं, जिससे एक विशिष्ट जाल जैसी संरचना बन जाती है। पुराने घाव पत्तियों की शिराओं के साथ बढ़ना जारी रखते हैं और प्रायः एक पीले किनारे से घिरे होते हैं। शुरुआत में, धब्बेनुमा प्रकार में धब्बे छोटे, ठोस, गोलाकार घाव होते हैं, जो पीले किनारों से घिरे होते हैं। बाद में, ये धब्बे बढ़ कर 3 से 6 मिमी के व्यास के हल्के या गहरे कत्थई धब्बों में बदल जाते हैं। बालियाँ भी संक्रमित हो सकती हैं। बिना जालीनुमा बनावट के छोटी भूरे रंग की धारियां डंठलों पर विकसित होती हैं, जिनके कारण उपज में कमी होती है और बीज सिकुड़ जाता हैं। संक्रमित गुठलियों के आधार पर आम से भूरे घाव होते हैं।
माफ़ कीजियेगा, हम पायरेनोफ़ोरा टेरेस के विरुद्ध कोई नया वैकल्पिक उपचार नहीं जानते हैं। यदि आप ऐसा कुछ जानते हों जिससे इस रोग से लड़ने में सहायता मिलती हो, तो हमसे संपर्क करें। हमें आपसे यह जानकारी प्राप्त करने की प्रतीक्षा रहेगी।
हमेशा समवेत उपायों का प्रयोग करना चाहिए, जिसमें रोकथाम के उपायों के साथ जैविक उपचार, यदि उपलब्ध हो, का उपयोग किया जाए। ट्रायज़ोल तथा स्ट्रॉबिलुरिन वाले पत्तियों के कवकरोधक दोनों प्रकार के नेट ब्लॉच को नियंत्रित करने में प्रभावी हैं। टेबुकोनाज़ोल के प्रयोग से बचना चाहिए। अधिक वर्षा वाली परिस्थितियों में, दो बार छिड़काव आवश्यक हो सकता है। जहाँ संभव हो, कवकरोधकों के उपयोग के बीच में अन्य उपायों का भी इस्तेमाल करना चाहिए, जिससे प्रतिरोध के विकास की संभावना कम रखी जा सके। बीजों का उपचार सिर्फ़ जालीनुमा प्रकार के नेट ब्लॉच में ही प्रभावी होता है।
नेट ब्लॉच कवक पायरेनोफ़ोरा टेरेस के कारण होता है, जो पौधों के अवशेषों तथा स्वैच्छिक पौधों पर सर्दियों भर जीवित रहता है। यह रोग संक्रमित बीजों से भी हो सकता है, किन्तु आम तौर पर ऐसा कम होता है। यह रोग हवा में उड़ते बीजाणुओं तथा वर्षा के छींटों के कारण फैलता है। 10 से 20 डिग्री सेल्सियस के तापमान के मध्य लगभग छह घंटों की नम परिस्थितियों के बाद प्राथमिक संक्रमण होता है। हवा द्वारा बीजाणुओं का बिखराव प्राथमिक संक्रमण के 14 से 20 दिनों के बाद होता है, जब परिस्थितियाँ अनुकूल होती हैं। अत्यधिक संक्रमण पत्तियों के हरित भाग तथा पौधे की उत्पादकता को कम कर देता है, तथा पत्तियों को समय से पूर्व नष्ट कर देता है। कवक तने में भी विकसित हो जाता है और फसल कटने के बाद बचे हुए खूंटों में जीवित रहता है, जहाँ से अगले मौसम में नया संक्रमण प्रारम्भ हो जाता है। नेट ब्लॉच बीजों के वज़न और दानों की गुणवत्ता को कम करता है।