Parastagonospora nodorum
फफूंद
पौधे की निचली पत्तियों पर पानी से भरे हुए और छोटे हरितहीन घाव नज़र आते हैं। रोग निचली पत्तियों से ऊपरी पत्तियों तक फैल जाता है। बाद में ये घाव पीले किनारे वाले धूप में जले हुए से कत्थई, अंडाकार या असमान आकार के पत्तियों के धब्बे में बदल जाते हैं। जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, बड़े भूरे घावों में वृहत्प्रदर्शक शीशा या माइक्रोस्कोप से देखने पर सूक्ष्म भूरे रंग के फैलने वाले पदार्थ दिखाई देते हैं। बुरी तरह प्रभावित पत्तियां सिरे से मरने लगती हैं क्योंकि ये धब्बे आपस में मिलने लगते हैं। फूल खिलने के बाद, नम मौसम होने से भूसे में घाव होने लगते हैं। लक्षण प्रायः सिरे से आरम्भ होते हैं, लेकिन पूरा क्षेत्र राख जैसे भूरे क्षेत्र (ग्लूम बलोच) के साथ गहरे कत्थई से ले कर गहरे बैंगनी घावों से ढका होता है। अत्यधिक संक्रमित होने पर दाने हल्के और मुरझाए हुए हो सकते हैं। संक्रमित बीजों में असमान निकासी होती है और अंकुर कत्थई सिरे वाले होते हैं।
माफ़ कीजियेगा, हम फ़ेज़ोफ़ेरिया नोडोरम के विरुद्ध अन्य कोई इलाज नहीं जानते हैं। यदि आप ऐसा कुछ जानते हों जिससे इस रोग से लड़ने में सहायता मिलती हो, तो कृपया हम से संपर्क करें। हम आपसे जानकारी प्राप्त करने की प्रतीक्षा करेंगे।
रोग का रासायनिक संशोधन इसके प्रकोप के खतरे को कम करने में प्रभावी हो सकता है, लेकिन छोटे खेतों के लिए अलाभप्रद हो सकता है। यदि कवकरोधकों की आवश्यकता हो, तो डाइफ़ेनोकोनाज़ोल, ट्रायाडिमेनोल या फ़्लुक्विनकोनाज़ोल वाले उत्पादों का प्रयोग किया जा सकता है। प्रयोग की विधि प्रकोप के समय तथा खेती के प्रकार पर निर्भर करता है।
पत्तियों का यह रोग पैरास्टेगोनोस्पोरा नोडोरम कवक के कारण होता है, जो गेंहूँ के भूसे, संक्रमित बीजों या वैकल्पिक धारक फसलों पर जीवित रहता है। यह कवक पानी के द्वारा फैलता है और इसे संक्रमण फैलाने के लिए 12 से 18 घंटों की पत्तियों की नमी की आवश्यकता होती है। इसके बाद कवक हवा या वर्षा के छींटों से पौधों के ऊपरी भागों में अंकुरों को संक्रमित कर सकते हैं। तथा समीप की फसलों तक फैलता है। मौसम में देरी से हुए संक्रमण के कारण यदि रोग ऊपर की ओर बढ़ रहा हो, तो ग्लूम ब्लोच हो सकता है। इसके कारण मुरझाए हुए दाने और कम उपज होती है। जीवाणु हवा से फैलते हैं और ये लम्बी दूरी तय कर सकते हैं और बाद में अन्य खेतों में अंकुरों को संक्रमित कर सकते हैं। इसके कारण बाद वाली फसलों में आरम्भ से ही संक्रमण का तथा असमान रूप से उगना होता है। 7 डिग्री से. से कम तापमान पर इस कवक का जीवन-चक्र बाधित होता है और विकास के लिए आदर्श स्थिति 20 से 27 डिग्री से. का तापमान होना आवश्यक है।