Colletotrichum graminicola
फफूंद
पौधों के प्रकार, वातावरण की परिस्थितियां और बीजाणु की शक्ति संक्रमण के नतीजे को निर्धारित करती है। संवेदनशील प्रजातियों में, संक्रमण की विशेषता इसके तीन विभिन चरणों से होती है; पत्तियों में पाला लगना, शीर्ष का मुरझा जाना तथा तनों में सड़न। सबसे पहले निचली पत्तियों पर, पत्ती के शीर्ष या मध्य भाग में, तथा बाद में ऊपरी पत्तियों पर छोटे, अंडाकार, पानी से भरे हुए घाव दिखाई देते हैं। वे बढ़ कर पीले-भूरे केंद्र तथा बैंगनी किनारों वाले पारदर्शी धब्बों के रूप में विकसित होते हैं और आपस में मिल कर पाले के धब्बे बनाते हैं जो पूरी पत्ती पर फैल जाते हैं (लीफ़ ब्लाइट)। पौधों के विकास की बाद की अवस्था में, यदि परिस्थितियां अनुकूल हों, तो मृत ऊतकों पर गहरे, उठे हुए दाग़ दिखाई देते हैं। डंठलों तथा तनों को चोट लगना भीतरी ऊतकों के समूहीकरण में सहायक होता है, जिसके कारण अन्य लक्षण, जैसे कि शीर्ष का मुरझाना तथा तनों में सड़न, दिखाई देते हैं।
हमें कोलेटोट्रिचम ग्रेमिनिकोला के विरुद्ध कोई प्रभावी उपचार ज्ञात नहीं है। यदि आप ऐसा कुछ जानते हों जिससे इस रोग से लड़ने में सहायता मिलती हो, तो कृपया हमसे संपर्क करें। हमें आपकी राय की प्रतीक्षा रहेगी।
हमेशा समवेत उपायों का प्रयोग करना चाहिए, जिसमें रोकथाम के उपायों के साथ जैविक उपचार, यदि उपलब्ध हो, का उपयोग किया जाए। आज तक, इसके विरुद्ध कोई प्रभावी कवकरोधी उपलब्ध नहीं है।
कवक मिट्टी में पौधों के अवशेषों में जीवित रहता है, जहाँ से यह वसंत में हवा तथा बारिश के छींटों से निचली पत्तियों पर वितरित होता है। दूसरी बार यह पत्तियों के किनारों पर बढ़ने वाले घावों से ऊपरी पत्तियों या डंठलों पर फैलता है। डंठलों की चोट भीतरी ऊतकों के समूहीकरण की संभावना को बढ़ाती है। यदि वातावरण की परिस्थितियां अनुकूल हों, तो बाद में अन्य लक्षण, जैसे कि शीर्ष का मुरझा जाना तथा तनों में सड़न, दिखाई देते हैं। कवक (तथा रोग) के जीवन-चक्र के लिए अपेक्षाकृत शुष्क तापमान (20 से 30 डिग्री से), लम्बे समय तक उच्च सापेक्षिक आर्द्रता और समय-समय पर वर्षा अनुकूल है। कवक पौधों को अंकुरण की अवस्था में संक्रमित कर सकते हैं, किन्तु यदि खेतों में पर्याप्त रूप से उर्वरक डाला गया हो तो कदाचित ही उपज में विशेष हानि होती है। तेज़ी से बढ़ने वाली पत्तियों पर बढ़ते लक्षणों का कम असर पड़ता है।