Nothophoma arachidis-hypogaeae
फफूंद
पत्तियों पर स्पष्ट लाल-भूरे किनारों से घिरे गोल से लेकर अनियमित हल्के पीले-भूरे रंग के घाव (1.5 से लेकर 5 मि.मी.) दिखाई देते हैं। जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, इस घाव का केन्द्र भूरा-सा होकर सूख जाता है, कुछ मामलों में अंततया गिरकर एक छेद छोड़ जाता है, जिससे पत्तियों का स्वरूप चिथड़े-चिथड़े नज़र आता है। ये घाव एक बड़े, अनियमित, परिगलित धब्बों का निर्माण करने के लिए मिल जाते हैं। पत्ती की दोनो सतहों पर रोग ग्रस्त ऊतक के भीतर काली, काली मिर्च-जैसी फफूंद के धब्बे दिखाई देते हैं।
क्षमा कीजिए, हम फ़ायलोस्टिक्टा एरेकिडिस-हायपोगे के विरुद्ध किसी वैकल्पिक उपचार के बारे में नहीं जानते हैं। अगर आप ऐसा कुछ जानते हैं जो इस रोग से लड़ने में हमारा सहायक हो सकता है, तो कृपया संपर्क करें। हमें आपके सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी।
अगर उपलब्ध हो, तो हमेशा जैविक उपचारों के साथ सुरक्षात्मक उपायों के संयुक्त दृष्टिकोण पर विचार करें। फ़ायलोस्टिक्टा लीफ़ स्पॉट के कारण होने वाला नुकसान अक्सर न्यूनतम होता है, इसलिए कवकनाशकों का प्रयोग करने का सुझाव कभी-कभार ही दिया जाता है।
यह फफूंद भूमि में मौजूद फसल के अवशेषों में करीब एक वर्ष तक जीवित रह सकता है। भूमि से यह अक्सर पौधों के ऐसे क्षतिग्रस्त और परिगलित ऊतकों को संक्रमित करता है जो अन्य रोगों से प्रभावित हैं या खेत में काम करने के दौरान क्षतिग्रस्त हए हैं (माध्यमिक संक्रमण)। फिर यह स्वस्थ ऊतकों में फैलता है और विशिष्ट लक्षणों की शुरूआत करता है। फफूंद के विकास और रोग के बढ़ने के लिए 25-30° सें. के बीच का तापमान तथा 5.5-6.5 के बीच का पीएच अनुकूलतम स्थितियाँ हैं। फ़ायलोस्टिक्टा लीफ़ स्पॉट को मूँगफली में होने वाले एक प्रमुख रोग के रूप में माना जाता है।