धान

चावल के खोल में धब्बे (ब्लाइट)

Rhizoctonia solani

फफूंद

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संक्षेप में

  • पानी की सतह के समीप छिलकों (खोल) पर अंडाकार, हरे से भूरे रंग के पानी भरे हुए घाव।
  • पत्तियों तथा तनों पर कत्थई किनारों वाले असमान भूरे से सफ़ेद रंग के घाव।

में भी पाया जा सकता है

1 फसलें

धान

लक्षण

रोग के प्रारम्भिक लक्षण जल की सतह के समीप छिलकों (खोल) पर घाव हैं। ये घाव अंडाकार, हरापन लिए हुए भूरे, 1-3 सेमी लम्बे और पानी से भरे हुए होते हैं। ये घाव असमान रूप से बढ़ते हैं और कत्थई किनारों के साथ घिरे भूरे से सफ़ेद होते जाते हैं। जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, पौधों का ऊपरी भाग भी संक्रमित होने लगता है। इन भागों में, जल्द बढ़ने वाले घाव दिखाई देने लगते हैं और पूरी पत्ती चमकीली हो जाती है। इसके कारण पत्तियां और पूरा पौधा भी मर सकता है। इसके साथ ही, पौधे की सतह पर कवकीय फुंसियां बन जाती हैं।

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जैविक नियंत्रण

दुर्भाग्यवश, हमें अभी कोई भी प्रभावी जैविक नियंत्रक विधि ज्ञात नहीं है।

रासायनिक नियंत्रण

उपलब्ध होने पर जैविक उपचार के साथ निवारक उपायों के साथ एक एकीकृत दृष्टिकोण पर हमेशा विचार करें। संक्रमण को रोकने के लिए, निम्नलिखित प्रकार के कवकनाशकों काप्रयोग करें: हेक्साकोनाजोल सेक (2 मिली./ ली.) या वेलिडामेसिन 3 ली. (2 मिली / ली.) या प्रोपीकोनाजोल २५ ईसी (1 मिली. / ली.)या ट्राईफ़्लॉक्सिट्रोबिन के साथ टेबुकोनाज़ोल (0.4 गर. / ली.)। दोनों स्प्रे 15 दिन के अंतराल पर बदलते रहें।

यह किससे हुआ

चावल के खोल में धब्बों के लिए आदर्श स्थिति 28 डिग्री से 32 डिग्री का उच्च तापमान, नाइट्रोजन उर्वरक का उच्च स्तर, तथा 85-100 प्रतिशत की सापेक्ष आर्द्रता है। वर्षा ऋतू में विशेषकर इस रोग के संक्रमण और प्रसार का अधिक खतरा होता है। बंद छतरी नमी की अवस्था और संस्पर्श के लिए सहायक होती है। यह कवक एक स्केलेरोटियम के रूप में मिट्टी में कई वर्षों तक जीवित रहता है। खेत में पानी भर जाने पर यह सतह पर तैरने लगता है। एक बार चावल के पौधे के संपर्क में आने पर कवक पत्तियों के खोल में प्रवेश कर जाता है।


निवारक उपाय

  • पौधे लगाने के मौसम के अनुकूल उर्वरकों का संतुलित प्रयोग सुनिश्चित करें।
  • पौधे लगाने में इष्टतम घनत्व बनाए रखें (सीधे बीज लगाते समय या रोपाई के समय)।
  • खर-पतवार धारकों पर नियंत्रण रखें , विशेषकर मेड़ पर।
  • मौसम की शुरुआत में अच्छी जलनिकासी की व्यवस्था करें, ताकि महामारी के स्तर से बचा जा सके।
  • पौधों के मध्य पर्याप्त दूरी रखें।
  • जल्द रोपाई से बचें क्योंकि इससे रोग को मदद मिलती है।

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