Corynespora cassiicola
फफूंद
आरम्भ में, पुरानी पत्तियों पर छोटे, कोणीय कत्थई धब्बे दिखाई देते हैं और ये धीरे-धीरे ऊपर की ओर बढ़ते जाते हैं। रोग के बढ़ने के साथ-साथ, धब्बे बड़े होते जाते हैं और गहरे किनारों वाले हल्के भूरे रंग में बदल जाते हैं, जो पूर्ण रूप से पीले आभामंडल से घिरे होते हैं। इनका केंद्र परिगलित हो सकता है और गिर जाता है (गोल छेद हो जाता है), जिसके कारण पत्तियों की सतह खुरदुरी दिखाई देती है। गीली परिस्थितियों में, धब्बे काफ़ी बड़े हो जाते हैं और आपस में मिल जाते हैं, और गोली चलाने के अभ्यास में इस्तेमाल किए जाने वाले टारगेट के जैसे दिखाई देते हैं। कभी-कभी डंठलों तथा डालियों पर अंडाकार गहरे कत्थई धब्बे दिखाई देते हैं। आम तौर पर, फलों पर लक्षण विकसित नहीं होते हैं, किन्तु कुछ अवस्थाओं में लम्बे समय तक गीला मौसम रहने पर कत्थई, धंसे हुए धब्बे दिखाई देने लगते हैं।
पत्तियों पर घावों के आकार को नियंत्रित करने के लिए सीलोन दालचीनी के सुगन्धित तेल के सत (0.52 माइक्रोलीटर/मिलीलीटर) का प्रयोग किया जा सकता है। यह अत्यंत आवश्यक है कि फलों के संक्रमित होने से पूर्व फ़सल का उपचार किया जाए वरना उपचार अर्थहीन हो जाता है।
हमेशा समवेत उपायों का प्रयोग करना चाहिए, जिसमें रोकथाम के उपायों के साथ जैविक उपचार, यदि उपलब्ध हो, का उपयोग किया जाए। यदि लक्षण अधिक गंभीर हैं, उदाहरण के लिए, यदि पत्तियों का वृहद पैमाने पर क्षरण हो रहा हो, तो मेंकोज़ेब, कॉपर या क्लोरोथेलोनिल वाले कवकरोधकों के नियमित अन्तराल पर प्रयोग से रोग को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है। कवकरोधक बेंज़ीमीडाज़ोल के विरुद्ध कुछ प्रतिरोध देखा गया है।
यह रोग कवक कोरीनेस्पोरा केस्सिकोला के कारण होता है। यह ऊष्ण कटिबंधीय तथा उप-ऊष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में सबसे आम है। यह खीरे और टमाटर का प्रमुख जीवाणु है और पपीते को कभी-कभी ही प्रभावित करता है। यह बीजाणुओं द्वारा फैलता है जो पत्तियों की निचली सतह पर विकसित होते हैं। बीजाणु एक पौधे से दूसरे पौधे तक हवा और वर्षा से प्रसारित होते हैं। गीला, नम मौसम अत्यधिक संक्रमण के लिए अनुकूल है। पत्तियों के अत्यधिक क्षरण से उपज में ह्रास तथा फलों की गुणवत्ता में कमी आती है। द्वितीयक धारकों में अनेक खर-पतवार के साथ-साथ एवाकाडो, ब्रेडफ्रूट, कसावा, सोयाबीन या बैंगन शामिल हैं।