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मकई का उत्तरी पत्तियों का झुलसा रोग

Setosphaeria turcica

फफूंद

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संक्षेप में

  • सबसे पहले निचली पत्तियों पर छोटे, पानी से भरे हुए धब्बे दिखाई पड़ते हैं।
  • धब्बे धीरे-धीरे बड़े हो कर पीले-भूरे, सिगार के आकार के स्पष्ट हरे रंग के पानी से भरे किनारों वाले परिगलित घावों में बदल जाते हैं।
  • ये घाव बाद में आपस में मिल जाते हैं और पत्ती तथा डंठल के एक बड़े हिस्से को अपनी चपेट में ले लेते हैं, जिसके कारण पौधे की मृत्यु हो जाती है तथा वह झुक जाता है।

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लक्षण

लक्षण सबसे पहले निचली पत्तियों पर छोटे, पानी से भरे हुए धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं। जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, वे पौधों की ऊपरी पत्तियों पर भी दिखाई देने लगते हैं। पुराने धब्बे धीरे-धीरे बढ़ कर पीले-भूरे, लम्बे सिगार के आकार के विशिष्ट गहरे दाग़ वाले हल्के हरे रंग के पानी से भरे किनारों वाले परिगलित घावों में बदल जाते हैं। ये घाव बाद में आपस में मिल जाते हैं और पत्ती तथा डंठल के एक बड़े हिस्से को अपनी चपेट में ले लेते हैं, जिसके कारण पौधे की मृत्यु हो जाती है तथा वह झुक जाता है। यदि संक्रमण दाने के विकसित होने की अवस्था के दौरान पौधों के ऊपरी हिस्से तक फैल जाता है, तो उपज को गंभीर हानि (70% तक) हो सकती है।

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जैविक नियंत्रण

संक्रमण के ख़तरे को कम करने के लिए ट्राईकोडर्मा हर्ज़ियेनम या बैसिलस सब्टिलिस पर आधारित जैव-कवकरोधकों का विभिन्न चरणों पर प्रयोग किया जा सकता है। सल्फ़र के घोल का प्रयोग भी प्रभावी होता है।

रासायनिक नियंत्रण

रोकथाम के उपायों के साथ सावधानीपूर्वक खेती प्रथाओं का समावेश करने वाले दृष्टिकोण की सलाह दी जाती है। रोग को नियंत्रित करने के लिए एक प्रतिरोधात्मक कवकरोधी का प्रयोग प्रभावी हो सकता है। इसके अलावा, ऊपरी पत्तियों और बालियों के संरक्षण के लिए नीचे की छतरी पर लक्षणों के दिखाई देते ही कवकरोधकों का प्रयोग किया जा सकता है। अज़ोक्सिस्ट्रोबिन, पाइकोक्सिस्ट्रोबिन, मेंकोज़ोब, पायराक्लोस्ट्रोबिन के साथ मेटकोनाज़ोल, टेट्राकोनाज़ोल पर अधारित उत्पादों को छिड़काव के लिए उपयोग करें। पाइकोक्सिस्ट्रोबिन के साथ साइप्रोकोनाज़ोल, पायराक्लोस्ट्रोबिन के साथ मेटकोनाज़ोल, प्रोपिकोनाज़ोल के साथ अज़ोक्सिस्ट्रोबिन, प्रोथियोकोनाज़ोल के साथ ट्राइफ़्लोक्सिस्ट्रोबिन पर आधारित उत्पादों को लगाएं। बीजों के उपचार की सलाह नहीं दी जाती है।

यह किससे हुआ

कवक शीत ऋतु में मिट्टी या पौधों के अवशेषों में जीवित रहता है। वर्षा, रात के समय ओस, उच्च आर्द्रता तथा सामान्य तापमान कवक के प्रसार के लिए अनुकूल होता है। हवा तथा बारिश के छींटों के साथ यह मकई के छोटे पौधों में मिट्टी से निचली पत्तियों पर फैलता है। बारिश की परिस्थितियाँ तथा कृषि के खराब तरीकों से इसका अन्य पौधों तथा खेतों में प्रसार होता है। पौधे के विकास के मौसम के दौरान संक्रमण के लिए आदर्श तापमान 18 से 27 डिग्री का होता है। 6 से 18 घंटों तक की लम्बी अवधि तक पत्तियों का गीलापन भी आवश्यक है। कवक का एक अन्य प्रिय धारक ज्वार है।


निवारक उपाय

  • प्रतिरोधक या सहनशील प्रजातियों को उगायें।
  • संतुलित पोषक तत्वों की आपूर्ति सुनिश्चित करें तथा नाइट्रोजन उर्वरकों के अत्यधिक प्रयोग से बचें।
  • खेतों में तथा उनके आसपास से नियमित रूप से खर-पतवार हटाते रहें।
  • अत्यधिक प्रसार से बचने के लिए सोयाबीन, बीन्स या सूरजमुखी के साथ चक्रीकरण करें।
  • पौधों के अवशेषों को दबाने के लिए गहरी जुताई करें तथा मिट्टी में प्रयोग की मात्रा को कम करें।

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