Puccinia arachidis
फफूंद
मूंगफली का ज़ंग (पीनट रस्ट), अक्सर पत्तियों के निचले भाग पर, गोलाकार संतरी भूरे रंग के बहुत छोटे दानों के रूप में दिखाई देता है। इनके चारों ओर अक्सर क्लोरोसिस के कारण हुए पीले रंग के आभामंडल होते हैं। इससे बड़े रूप में पत्तियों और पौधे की वृद्धि प्रभावित होती है। जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, गंभीर रूप से संक्रमित पत्तियाँ दोनो तरफ़ से ज़ंग के रंग के दानों से भर जाती हैं, वे पीली व ‘‘ज़ंग के रंग की‘‘ हो जाती हैं, और अंततया सूख जाती हैं। शंकुओं, तनों और डंठलों पर लंबे लाल-भूरे (और बाद मे काले) रंग के दाने उभर सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप, पतझड़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है। यह रोग बड़े रूप में फलियों और भूसे की उपज और तेल की गुणवत्ता को कम कर सकता है।
जैविक कारक संक्रमण को नियंत्रित करने में सहायक हो सकते हैं। फफूंद की वृद्धि के विरुद्ध पत्तियों पर सेल्विया ऑफ़िशियनलिस और पोटेन्टिला एरेक्टा के पौधों के अर्क का एक सुरक्षात्मक प्रभाव होता है। इस रोग के फैलाव को कम करने में अलसी के तेल और मूँगफली के तेल जैसे अन्य पौधों के अर्क भी प्रभावी होते हैं।
अगर उपलब्ध हों, तो हमेशा जैविक उपचारों के साथ सुरक्षात्मक उपायों के संयुक्त दृष्टिकोण पर विचार करें। रोग के विकास के बाद के चरणों में रसायनों द्वारा उपचार व्यवहार्य नहीं होता है। अगर कवकनाशकों की आवश्यकता है, तो मेन्कोज़ेब, प्रोपिकोनाज़ोल या क्लोरोथेलोनिल युक्त उत्पादों का छिड़काव करें (3 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से)। इसका प्रयोग संक्रमण के पहली बार दिखने के तुरंत बाद शुरू कर दिया जाना चाहिए और इसके प्रयोग को 15 दिनों बाद दोहराया जाना चाहिए।
मूंगफली का ज़ंग भूमि में मौजूद फसलों के अवशेषों में या इस रोग से प्रभावित होने वाले वैकल्पिक पौधों के रूप में कार्य करने वाले अन्य फलीदार पौधों में जीवित रहता है। प्राथमिक संक्रमण हवा में बीजाणुओं के उड़ने के चरण के दौरान शुरू होता है जो निचली पत्तियों तक पहुँच जाता है। माध्यमिक रूप से फैलाव हवा के द्वारा प्रसारित बीजाणुओं के द्वारा होता है। संक्रमित धब्बे फफूंद की वृद्धि के अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों के दौरान तेज़ी से फैल सकते हैं, उदाहरण के लिए, गर्म तापमान (21 से 26° सेल्सियस) और गीला, बदली वाला मौसम (धुंध या रातभर पड़ने वाली भारी ओस)। इसके कारण पौधे की नई डंठलों और जड़ों की भी वृद्धि कम रह जाती है, जिसके परिणामस्वरूप पौधे पूरी तरह विकसित नहीं हो पाते हैं। देखा गया है कि इस ज़ंग के बढ़ने की गति को भूमि में मौजूद फ़ॉसफ़ोरस उर्वरक की अधिक मात्रा कम करती है।