Stromatinia cepivora
फफूंद
संक्रमण विकास की किसी भी अवस्था में हो सकता है, किन्तु प्रायः यह सबसे पहले पुराने पौधों पर दिखाई देता है। इसकी विशिष्टता शीर्ष से आरम्भ हो कर नीचे की ओर बढ़ते हुए पत्तियों का पीला पड़ना है। मुरझाना तथा बाद में मर जाना भी होता है। जब तक भूमि से ऊपर दिखने वाले लक्षण स्पष्ट होते हैं तब तक जीवाणु जड़ों, कंदों, तनों तथा पत्तियों के खोल में घर बना चुका होता है। भूमि रेखा पर प्रायः सफ़ेद कवकीय विकास दिखाई देता है तथा यह जड़ों की सड़न का एक चिन्ह है। बाहर निकाले जाने पर कंद पर, प्रायः इसके आधार पर, सफ़ेद फूला हुआ कवकीय विकास दिखता है जो सड़न के बढ़ने का चिन्ह है। सफ़ेद फफूंदी के अन्दर बहुत छोटे काले और गोलाकार धब्बे बन जाते हैं | मुख्य जड़ें धीरे-धीरे नष्ट हो कर गायब हो जाती हैं।| द्वितीयक जड़ें विकसित हो सकती हैं तथा क्षैतिज रूप से बढ़ती हैं, जो अन्य पौधों के लिए संक्रमण की राह बनाता है। कुछ दिनों से एक सप्ताह के बीच पौधे गिरने लगते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि लक्षण खेतों में समूह में क्यों दिखते हैं।
जैविक तरीकों, मुख्यतः प्रतिरोधी कवक, का उपयोग करते हुए नियंत्रण के कई स्तर हैं। उदाहरण के लिए, ट्राईकोडर्मा, फ्युज़ेरियम, ग्लियोक्लैडियम या चैटोमियम, सफ़ेद सड़न की कवक के परजीवी हैं और इसके विकास को रोकने के लिए प्रयोग किये जा सकते हैं। अन्य कवक, उदाहरण के लिए, ट्राईकोडर्मा हर्ज़ियेनम, टैराटोस्पर्मा ओलिगोक्लेडम या लैटेरिस्पोरा ब्रेविरामा भी बेहद प्रभावी हैं। खेतों के बंजर होने के समय कवक के विकास तथा बीजाणुओं के उत्पादन को प्रेरित करने के लिए लहसुन के सत से उपचार किया जा सकता है। इससे बाद के मौसम में रोग की संभावना कम होती है। लहसुन के कंद को छीलकर, कुचलकर तथा 10 ली पानी में मिलाना होता है। इसके बाद इसे खेत में 10 ली प्रति 2 वर्ग मी की दर से डाला जा सकता है। प्रयोग के लिए आदर्श तापमान 15 -18 डिग्री से. है क्योंकि यह कवक के लिए सहायक है।
हमेशा समवेत उपायों का प्रयोग करना चाहिए, जिसमें रोकथाम के उपायों के साथ जैविक उपचार, यदि उपलब्ध हो, का उपयोग किया जाए। सफ़ेद सड़न के रोग में विशेष रूप से संक्रमण कम करने के लिए सांस्कृतिक तथा जैविक तरीके बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकते हैं। यदि कवकरोधक आवश्यक हों, तो रोपाई से पूर्व टैबूकोनाज़ोल, पेंथियोपाईरेड, फ्लुडियोक्सोनिल या आइप्रोडियोन वाले उत्पादों का मिट्टी पर या रोपाई के बाद पत्तियों पर छिड़काव के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। प्रयोग की विधि उपचार के लिए प्रयोग किये जाने वाले सक्रिय कारकों पर निर्भर करती है तथा इसे पहले से जांच लेना चाहिए।
सफ़ेद सड़न का रोग मिट्टी में रहने वाले कवक स्केलेरोटियम सेपिवोरम के कारण होता है। पौधे सामान्यतः मिट्टी के द्वारा संक्रमित होते हैं जहाँ सुप्त रोगजनक 20 वर्षों तक जीवित रह सकता है। रोग की तीव्रता मिट्टी में कवक की मात्रा से जुड़ी होती है। एक बार संपर्क स्थापित होने पर, रोगजनक से पीछा छुड़ाना लगभग नामुमकिन हो जाता है। कवक के जीवन चक्र तथा विकास के लिए एलियम की जड़ों का सत अनुकूल होता है। रोग का दिखाई देना मिट्टी की ठंडी (10-24 डिग्री से.) तथा आर्द्र परिस्थितियों से सम्बद्ध होता है तथा भूमि के अन्दर फफूंदी के जाल, बाढ़ के पानी, उपकरणों तथा पौधों के पदार्थों के द्वारा फैल सकता है। सफ़ेद सड़न का रोग प्याज़ के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक है तथा उपज में भारी नुकसान करता है। दूसरे खेत में कार्य करने से पूर्व औज़ारों तथा उपकरणों को कीटाणुमुक्त कर लें।