Gymnosporangium sabinae
फफूंद
पत्तियों की ऊपरी सतह पर सबसे पहले छोटे, भूरे, गोलाकार धब्बे बनते हैं। जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं, वे गहरे भूरे रंग के केंद्र के साथ चमकीले नारंगी-लाल हो जाते हैं। गर्मियों के अंतिम चरणों में, पत्तियों की निचली सतह पर दानों के आकार की, भूरी, गुठली जैसी संरचनाएं उभर आती हैं। कभी-कभी, कवक शाखाओं और युवा तनों की छाल में घाव और धँसे हुए फोड़े भी पैदा कर सकता है। हालांकि फल सीधे तौर पर प्रभावित नहीं होते, गंभीर संक्रमण के कारण पत्तियां गिर सकती हैं और फसल को नुकसान हो सकता है।
अब तक, इस रोग के लिए किसी भी जैविक उपचार का पता नहीं है।
अगर उपलब्ध हों तो हमेशा जैविक उपचार के साथ निवारक उपायों के मिलेजुले दृष्टिकोण पर विचार करें। कम संक्रमण आमतौर पर कोई समस्या नहीं और इसे अनदेखा किया जा सकता है। रोग को नियंत्रित करने के लिए डिफ़ेनोकोनाज़ोल पर आधारित कवकनाशी का उपयोग किया जा सकता है। घरेलु बागवानी करने वालों के लिए टेबुकोनाज़ोल कवकनाशी, ट्राइफ़्लोक्सिस्ट्रोबिन के साथ टेबुकोनाज़ोल, और ट्राइटिकोनाज़ोल रतुआ रोग के नियंत्रण के लिए अनुमोदित हैं।
लक्षण का कारण कवक जिमनोस्पोरैन्जियम सैबिना है, जो नाशपाती और हपुषा (जुनिपर) दोनों पर हमला करता है। रोगजनक के लिए नाशपती सिर्फ़ एक मध्यवर्ती मेज़बान है, और इसके जीवन चक्र को पूरा करने के लिए दोनों पेड़ों की ज़रूरत पड़ती है। यह पौधों की मृत सामग्री पर जीवित नहीं रह सकता, इसलिए इसे एक से दूसरे मेज़बान पौधे पर जाना पड़ता है। कवक इसके प्राथमिक मेज़बान, जुनिपर, में सुषुप्तावस्था में रहता है। वसंत में, बीजाणु जुनिपर से निकलकर आसपास के नाशपाती के पेड़ों को संक्रमित करते हैं। नाशपाती की पत्तियों की निचली सतह पर उपस्थित धब्बे दरअसल बीजाणु पैदा करने वाली संरचनाएं होती हैं। ये बीजाणु नाशपाती की पत्तियों को दोबारा संक्रमित नहीं कर सकते, इसलिए गर्मियों के अंत तक, ये लंबी दूरी तक फैल जाते हैं (500 मीटर तक) और नए जुनिपर पेड़ों को संक्रमित करते हैं। वहाँ, ये शाखाओं पर हमेशा रह जानी वाली सींग जैसी सूजन पैदा करते हैं। उच्च नमी की अवधि के बाद, ये संरचनाएं वसंत ऋतु में विशेष रूप से दिखने लगती हैं।