देखभाल
काबुली चना के उत्पादन तथा जुताई एकड़ में भारत विश्व का अग्रणी देश है। काबुली चना सबसे पुरानी नकद दलहन फसलों में से एक है और भारत मे प्राचीन समय से उगाया जाता रहा है। यह प्रोटीन का एक संपूर्ण स्त्रोत होने के साथ रेशे तथा अन्य आवश्यक विटामिन भी प्रदान करता है। काबुली चने से दाल (यानी चना दाल) और आटा (बेसन) भी बनाया जाता है। ताज़ी हरी पत्तियों का सब्ज़ी के तौर पर उपयोग होता है जबकि काबुली चने का भूसा पशुओं के लिए सर्वोत्तम चारा है।
मिट्टी
काबुली चने के पौधों को विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में उगाया जा सकता है किंतु बलुही से लेकर हल्की दोमट मिट्टी आदर्श होती है। मिट्टी अच्छी जलनिकासी वाली होनी चाहिए क्योंकि काबुली चने की खेती के लिए पानी जमा होना उपयुक्त नहीं है। 5.5 से लेकर 7.0 तक का पीएच स्तर काबुली चने को उपजाने के लिए आदर्श है। काबुली चने के बीजों के लिए खुरदुरी मिट्टी आवश्यक होती है और ये बहुत महीन और ढेलेदार मिट्टी में अच्छी तरह से नहीं उगते हैं।
जलवायु
नमी की अच्छी परिस्थितियों में काबुली चने का पौधा अच्छी तरह बढ़ता है। काबुली चना को उगाने के आदर्श तापमान 24 डिग्री से. और 30 डिग्री से. के बीच है। हालांकि पौधे न्यूनतम 15 डिग्री से. और अधिकतम 35 डिग्री से. तक के तापमान में भी जीवित रह सकते हैं। 650 से लेकर 950 मिमी. तक वार्षिक वर्षा आदर्श मानी गयी है।